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न्याय की तार्किकता
तीन अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘अन्याय का बुलडोजर’ सत्तारूढ़ बीजेपी सरकारों द्वारा गंभीर अपराधों, अनधिकृत कब्जों के खिलाफ पीला पंजा इस्तेमाल कर मकानों को गिराने की नीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिशा-निर्देश जारी करने पर चर्चा करने वाला था। अपराध साबित होने से पहले किसी का मकान गिराना उसके पूरे परिवार से अन्याय है, अगर बाद में व्यक्ति बेकसूर साबित हो जाए तो इसकी क्षतिपूर्ति कौन करेगा। कई बार देखा गया है कि बुलडोजर की कार्रवाई समाज के एक वर्ग विशेष के लोगों के खिलाफ ही की जाती है। बुलडोजरी न्याय पर प्रतिबंध, जनहित में न्याय संगत तथा काबिलेतारीफ है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
गरिमापूर्ण जीवन के लिए
सुप्रीम कोर्ट का आदेश जेलों में जाति के आधार पर काम के बंटवारे में सुधार लाने के लिए ऐतिहासिक और स्वागतयोग्य है। यह अंग्रेजी शासन की बर्बरता को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जबकि अब तक सरकारों ने इस मुद्दे को नजरअंदाज किया है। जिन जातियों को ब्रिटिश शासन ने आदतन अपराधी माना, उन्हें जेलों में अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ता है। सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश कैदियों के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार को स्पष्ट करता है और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
जिम्मेदारी समझें
पराली जलाने के कारण हवा की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है और वायु प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है। त्योहारों का मौसम भी शुरू हो चुका है। पटाखे भी इसमें सहभागी रहेंगे। सरकार पराली और पटाखे न जलाने के दिशानिर्देश जारी कर सकती है और कड़े नियम बना सकती है। लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझ इस पर अमल कर वायु को खराब होने से रोकना होगा।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली