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रेवड़ी संस्कृति के खतरे
तीस सितंबर के ट्रिब्यून में विचार के अंतर्गत नरेश कौशल का आलेख ‘एक जवाबदेह चुनावी घोषणा पत्र की दरकार’ आज रेवड़ी संस्कृति के दौर में प्रासंगिक लगा। आज राजनीति को रेवड़ी हाथ लग गई है और वह लगातार जनता को अपने मतलब के लिए बेवकूफ बनाकर सत्ता सुख भोग रही है। लोग भी लालच में इतने अंधे हो गए हैं कि उन्हें अपने मतलब के सिवा कुछ और नहीं सूझ रहा। आज एक नीतिगत और जनकल्याणकारी घोषणा पत्र की जरूरत है जो लालच नहीं विकासवादी हो।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
समग्र योजना बने
दिल्ली सरकार द्वारा सड़कों की मरम्मत और गड्ढा मुक्त करने का अभियान एक प्रशंसनीय कदम है। मुख्यमंत्री का निरीक्षण और मंत्रियों को जिम्मेदारी देना सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हैं। हालांकि, सवाल यह उठता है कि दिल्ली नगर निगम के अधीन आने वाली सड़कों की स्थिति पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है। दिल्ली की मलिन बस्तियों और शहरीकृत ग्रामीण इलाकों में सड़कों की हालत चिंताजनक है। यहां गड्ढों में सड़कों का कोई पता नहीं चलता। इस स्थिति में, यदि दिल्ली सरकार एक मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित करे, तो यह कार्य प्रभावी ढंग से संपन्न हो सकता है। एक समग्र और प्रभावी दृष्टिकोण अपनाने से ही शहर की सड़कों का सही सुधार संभव है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
स्वच्छता साझा जिम्मेदारी
प्रधानमंत्री द्वारा 2 अक्तूबर, 2014 को शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान महात्मा गांधी के स्वच्छता के सपनों को साकार करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। हालांकि, कुछ राज्यों में स्वच्छता के मामले में सुधार की कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर व्यक्ति औसतन 6500 रुपये बीमारियों पर खर्च करता है। ऐसे में स्वच्छता अभियान का उद्देश्य न केवल स्वास्थ्य सुधारना है, बल्कि गरीबों की मेहनत की कमाई को भी बीमारियों के इलाज में बर्बाद होने से बचाना है। स्वच्छता का अर्थ केवल व्यक्तिगत स्वच्छता नहीं, बल्कि सामुदायिक स्वच्छता भी है। हमें मिलकर इस दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर