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वादों की जिम्मेदारी
तीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल का लेख ‘एक जवाबदेह चुनावी घोषणा पत्र की दरकार’ चुनावी वादों की हकीकत पर प्रकाश डालता है। आजकल विभिन्न राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए लोकलुभावने वादे और मुफ्त की सुविधाएं बांट रहे हैं, जो वास्तविकता में भ्रष्टाचार का ही एक रूप है। उनका सुझाव है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों को अयोग्य घोषित करना चाहिए, जो अपने घोषणा पत्र की बुनियादी बातें पूरी नहीं करतीं। इसके अलावा, यह महत्वपूर्ण है कि जनता जागरूक हो और समझे कि मुफ्त सुविधाएं अंततः उनके ही टैक्स से आती हैं। अगर सरकार सही तरीके से शिक्षा, स्वास्थ्य, और कृषि की समस्याओं का समाधान करती है, तो समाज में वास्तविक सुधार संभव है।
शामलाल कौशल, रोहतक
अपराध की राह
अठाईस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का लेख ‘अपराध को लुभावना बनाता सोशल मीडिया’ गंभीर चिंता का विषय उठाता है। आजकल बच्चे सोशल मीडिया के माध्यम से गन कल्चर से प्रभावित होकर नकली हथियारों का प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे उनकी मानसिकता से हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है। माता-पिता को अपने बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए। स्कूल के शिक्षकों की भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि वे बच्चों को सकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकते हैं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
नि:शुल्क डायलिसिस
पंजाब के आठ सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क डायलिसिस की सुविधा शुरू करना आम जनता के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। निजी अस्पतालों में डायललिसिस की आसमान छूती कीमतों ने किडनी के मरीजों को परेशानी में डाल दिया है। ऐसी नि:शुल्क सुविधा और सरकारी अस्पतालों में भी खोलने की आवश्यकता है। निजी अस्पतालों में डायलिसिस की कीमतों को नियंत्रित करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
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