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राजनीतिक दांव
अठारह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘केजरी का आतिशी दांव’ में बताया गया है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से जमानत मिलने के बाद आतिशी को मुख्यमंत्री चुना है। केजरीवाल ने पद छोड़ने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगायी गयी पाबंदियों के मद्देनजर लिया है। उन्होंने कहा है कि वह तब तक कुर्सी पर नहीं बैठेंगे जब तक जनता उनकी ईमानदारी का फैसला नहीं कर देती। इस कदम से वे महिलाओं और आम लोगों का समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या महिला मुख्यमंत्री बनाने से वास्तव में राजनीतिक लाभ मिलेगा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जटिलताएं और आवश्यकताएं
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार जटिल है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों के साथ महाराष्ट्र, झारखंड और अन्य राज्यों के चुनाव एक साथ हो सकते थे, लेकिन सरकार और चुनाव आयोग जोखिम नहीं लेना चाहते। पहले हुए चुनावों में अलग-अलग मतदान तिथियों पर सवाल उठे हैं। विपक्ष की मजबूती, सर्वानुमति का अभाव और एनडीए के घटक दलों की सहमति पर संदेह इसे और जटिल बनाते हैं। इसलिए, संपादकीय ‘आम सहमति बने’ में उठाए गए मुद्दों पर विचार करना आवश्यक हो गया है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
हिंदी का भविष्य
हिंदी पखवाड़ा इन दिनों धूमधाम से मनाया जा रहा है, जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों में साहित्यकार और अधिकारी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस दौरान हिंदी भाषा का प्रवाह हर किसी के भीतर दिखाई देता है। हालांकि, साल के बाकी दिनों में सोशल मीडिया पर हिंदी प्रेम दिखाने के लिए लोग अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाओं का सहारा लेते हैं। आधुनिकता के नाम पर हिंदी की प्रासंगिकता कम होती जा रही है, फिर भी यह भाषा कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
विनोद कुमार विक्की, खगड़िया, बिहार