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कश्मीर की जटिलताएं
जम्मू-कश्मीर के चुनाव पर भारत और विश्व की निगाहें टिकी हुई हैं। अनुच्छेद 370 हटाने पर देश में विरोध करने वाले अलगाववादी नेता भी अब इन चुनावों में भाग ले रहे हैं। कांग्रेस ने भी उन नेताओं के साथ गठबंधन किया है जो अनुच्छेद 370 हटाने का वादा करते हैं। यह विश्वास दिखाता है कि कांग्रेस सोचती है कि यह वादा मतदाताओं को आकर्षित करेगा। हालांकि, अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में अमन कायम होने के बाद, ऐसा लगता है कि यह मुद्दा कांग्रेस के लिए नकारात्मक साबित हो सकता है, और इसका असर कश्मीर के साथ-साथ अन्य चुनावों में भी पड़ सकता है।
सुभाष बुडावन वाला, रतलाम, म.प्र.
प्रगति में बाधक
चौबीस अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में मधुरेंद्र सिन्हा का लेख ‘धीमा कर रही है प्रगति के पहियों को’ राजनीतिक विवादों और व्यवधानों के कारण विकास में आने वाली बाधाओं पर केंद्रित है। नि:संदेह, राजनीतिक हलचल ने इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को प्रभावित किया। बिहार में जातिवादी आंदोलन और हरियाणा में श्रम संघों और जाट आंदोलन के कारण विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा। गुजरात में पाटीदार आंदोलन ने भी राज्य की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। लेखक का सुझाव है कि शांति, राजनीतिक स्थिरता और अनुकूल वातावरण से ही विकास संभव है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
विवादास्पद बयान
सांसद कंगना रनौत अपने विवादास्पद बयानों के लिए जानी जाती हैं। हाल ही में, कंगना ने किसान आंदोलन को लेकर कुछ टिप्पणियां कीं। इस बयान ने भाजपा को नाराज कर दिया, और पार्टी ने भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचने की चेतावनी दी है। इस बयान ने विपक्ष और किसान संगठनों को बीजेपी सरकार पर हमले का मौका दिया है। हरियाणा और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन चुनावी मुद्दा रहे हैं, और इस प्रकार की अनावश्यक चर्चा भाजपा के लिए कांग्रेस से चुनौती बढ़ा सकती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली