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सोच में बदलाव जरूरी
बाईस अगस्त को दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘कड़े कानून नहीं, सोच बदलने से थमेगी यौन हिंसा’ प्रशंसनीय था। बलात्कारी को कड़ी से कड़ी सजा, यहां तक कि सजा-ए-मौत तक मिलनी चाहिए। लेकिन महिलाओं के प्रति समाज में व्याप्त विकृत मानसिकता को भी सजा मिलनी चाहिए। सबसे पहले, इस विकृत सोच को पुलिस विभाग से निकालना होगा। आज भी महिला फरियादी थाने में जाने से कतराती हैं, क्योंकि पुलिसकर्मियों का पीड़िता के साथ रूखा और गलत व्यवहार रहता है। कानून अपराधियों के लिए सख्त हैं, लेकिन अगर पुलिस विभाग ईमानदारी से कार्य करे, तो अपराधियों के मन में खौफ पैदा होगा, जो फिलहाल नदारद है।
सुरेन्द्र सिंह, महम
स्त्री सम्मान की शपथ
देश में कई दिवस मनाए जाते हैं, जैसे महिला दिवस, बालिका दिवस और चॉकलेट दिवस। महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ केवल कानून अपर्याप्त हैं। इसके लिए धर्मगुरुओं को जागरूक करना चाहिए और सरकार को हर महीने एक वर्ष तक पुरुष दिवस मनाना चाहिए। इस दिन, सभी पुरुष महिलाओं के सम्मान की शपथ लें, जैसा वे परिवार की महिलाओं के साथ करते हैं। यह श्रीराम, शिवाजी और गुरु गोबिंद सिंह जी का संदेश है।
लक्ष्मीकांता चावला, अमृतसर
बांग्लादेश में उत्पीड़न
इस्कॉन प्रवक्ता राधा रमन दास ने एक्स में लिखा है कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के बावजूद हिंदुओं पर अत्याचार जारी है। वे दावा करते हैं कि हजारों हिंदुओं को प्रतिदिन इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला जा रहा है, और इसका उद्देश्य बांग्लादेश में सभी 25 लाख हिंदुओं को हटाना है। यह स्थिति नई सरकार के नाक के नीचे से और सोची-समझी साजिश के तहत हो रही है। भारत को इस अत्याचार को रोकने के लिए उच्च स्तर पर हस्तक्षेप करना चाहिए।
सुभाष बुडावन वाला, रतलाम, म.प्र.