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उनका ऋणी है समाज
पंद्रह अग्रस्त के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित लेख ‘अविभाजित भारत को संवारने वाले लाहौर के नगीने’ सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, चिकित्सा और साहित्य जगत से जुड़ी अज़ीम हस्तियों की जानकारी से भरपूर नायब दस्तावेज़ रहा। विडंबना देखिए कि समाज के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नि:स्वार्थ और अमूल्य योगदान देने वालों के संस्थानों और सम्पत्तियों को देश विभाजन के समय तो उपद्रवियों की लूटपाट का शिकार बनना ही पड़ा, आजाद भारत में भी उनके नामों पर बने इदारों के नाम बदलने की कुचेष्टा की गई। अगर जनता जनार्दन का प्रबल विरोध न होता तो दयाल सिंह संस्थानों का नाम कब का बदल दिया गया होता।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
चिकित्सकों की सुरक्षा
चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों पर बढ़ते हमलों से उद्वेलित और भयभीत देश के चिकित्सक हड़ताल पर हैं। आईएमए के अनुसार देश के 23 राज्यों में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू है, किंतु कोलकाता में हुए महिला चिकित्सक से गैंगरेप, हत्या और अस्पताल में तोड़फोड़ से देश के चिकित्सक तथा चिकित्सा विभाग सदमे में है। मांग सही है, किंतु मरीज की उपेक्षा भी न हो अर्थात चिकित्सकों से त्रुटियां होती हैं तो उनके खिलाफ हिंसा को अपनाने के बजाय कानूनी कार्रवाई के कदम उठाना देश और जनहित में है। माना कि सुरक्षा के अभाव में चिकित्सकीय अमले से बेहतर उपचार की अपेक्षा नहीं कर सकते, किंतु मानवीयता के मद्देनजर कुछ तो रहमदिली चिकित्सकों को भी दिखानी चाहिए।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
राजनीति में परिवारवाद
देश की राजनीति में शुचिता की जरूरत महसूस होती है। राजनीतिक दल भी इसकी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। साथ ही साथ परिवार आधारित राजनीति को भी देशहित में घातक बताया जाता है लेकिन आज हर दल और उसके नेता अपने पैरों तले की खिसकती जमीन के चलते परिवारवाद को पोसते नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि वे राजनीति में अपनी पारिवारिक भूमिका टिकाऊ बनाने को परिजनों को आगे ला रहे हैं। देखा जाए तो राजनीति को कई दलों ने अपनी बपौती बना लिया है। ऐसा होना देश हित में नहीं, बल्कि राजनीतिक शुचिता के विचार के भी उलट है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.