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पराभव के सबक
तेरह अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में गुरबचन जगत का ‘बांग्लादेश में लोकतंत्र ढहने की मूल वजह’ लेख चर्चा करने वाला था। लेखक ने अमेरिका तथा इंग्लैंड में भी विपरीत परिस्थितियों को पार करते हुए लोकतंत्र से संबंधित संस्थानों को बचाये रखने की पहल का जिक्र किया। ये संस्थान लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में मददगार साबित हुए हैं। इसी संदर्भ में बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पतन का विश्लेषण तार्किक था। फिर भी शेख हसीना ने बांग्लादेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। लेकिन सत्ता के नशे में उनकी असहिष्णुता, तानाशाही, दमनकारी निरंकुश्ता, फैली अराजता उनके पतन का कारण बनी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
क्षेत्रीय बोलियां
बोलियों को बचाने की पहल की जानी चाहिए। बोलियां तो व्यवहार में लाने से ही जिन्दा रहेंगी। कई जगहों पर मालवी-निमाड़ी क्षेत्रों में बोले जाने वाली बोली का प्रचलन कम होता दिखाई देने लगा है। कई बार क्षेत्रीय बोली खड़ी भाषा के संग मिश्रित हो जाती है। क्षेत्रीय बोली जहां उचित हो वहां पर अवश्य बोली जाए। वर्तमान में शहरों एवं गांवों में जान-पहचान वाले लोगों से लोग अपनी बोली में बात करने के बजाय खड़ी बोली में बात करना ज्यादा पसंद करने लगे हैं, जो कि बोली के हित में उचित नहीं है। ऐसे में धीरे-धीरे ये क्षेत्रीय बोलियां हमसे ही दूर हो जाएंगी |
संजय वर्मा, मनावर, धार
इंसानियत का संदेश
सात अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘मांओं के उद्गार से मनुष्यता गौरवान्वित’ माताओं के मन में एक-दूसरे के बच्चे को अपने बच्चों की तरह समझकर वर्तमान में दोनों भारत के बंटवारे कराने वालों पर चोट करने वाला था। अलग समुदायों की दोनों मांओं ने यह कहकर कि दोनों ही हमारे बच्चे हैं, इंसानियत का संदेश दिया है। धार्मिक कट्टरता में फंसना किसी के हित में नहीं।
शामलाल कौशल, रोहतक