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आर्थिक चुनौती
बाईस जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून का लेख ‘समाज के अंतिम व्यक्ति को मिले विकास का लाभ’ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा एनडीए शासन की तीसरी पारी के पहले बजट से अपेक्षाओं का वर्णन करने वाला था। कृषि में 50 प्रतिशत भागीदारी के बावजूद जीडीपी में योगदान केवल 15 प्रतिशत है। किसानों की आमदनी दुगनी नहीं हुई, फसलों के लिये एमएसपी का कानून पास नहीं हुआ। छोटे तथा लघु उद्योग गायब होते जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतों में कमी का लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है। शहरों के मुकाबले गांवों में बेकारी बढ़ रही है। क्या वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किए जाने वाला नया बजट इन समस्याओं का समाधान ढूंढ़ सकेगा?
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
उम्मीद और बजट
वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2024-25 का बजट पेश किया गया। विपक्षी दलों ने बजट को कुर्सी बचाओ बजट बताया है जबकि सत्ता पक्ष ने बजट को प्रगति वाला बताया है। बजट का खूबसूरत पहलू रहा युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करना। पांच वर्ष में एक करोड़ इंटर्नशिप एवं छात्रों के लिए 10 लाख रुपए शिक्षा लोन की व्यवस्था महत्वपूर्ण है। लेकिन किसानों के लिए कोई विशेष राहत की बात नहीं कही गई और न ही अग्निवीर योजना पर कोई चर्चा की। ओल्ड पेंशन स्कीम के संदर्भ में और वेतन आयोग की सिफारिश के संदर्भ में भी यह बजट खामोश दिखाई देता है जिससे अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
शहीदों का स्मरण
पच्चीस वर्ष पहले देश के वीर सैनिकों ने आज ही के दिन पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में धूल चटाई थी। इसीलिए 26 जुलाई देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण रखता है। इस दिन कारगिल की चोटियों पर भारतीय सैनिकों ने तिरंगा फहराया था। पाकिस्तान ने जब-जब भी अपनी नापाक हरकतों से विश्वास की लक्ष्मण रेखा पार की है, तब-तब हमारे वीर जांबाजों ने इसे सुधारने के लिए सबक सिखाया। उसे हर युद्ध में मुंह की खानी पड़ी है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर