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महंगाई की समस्या
आजकल सामान्य और निम्न वर्ग का जीना दूभर हो गया है। देश में महंगाई एक स्थाई समस्या बन गई है। तिथि, त्योहार और आयोजनों के दौर में सबसे अधिक मूल्य वृद्धि होती है। ऐसे में मध्यम और निम्न वर्गीय परिवार की रसोई से सब्जियों का गायब होना लाजिमी ही है। महंगाई को काबू में करने के लिए उत्पादकों के लिए निकटतम भंडारण की सुविधा का विस्तार होना चाहिए। जिससे अधिक उत्पादन की स्थिति में सब्जियों को सुरक्षित रखकर जरूरत के समय बाजार को उपलब्ध करवाई जा सके। इसके अलावा बुवाई को भी सिलसिलेवार करना चाहिए ताकि एक साथ बाजार में सब्जियों के ढेर न हों। उत्पादकों को अपने वाजिब दाम मिलने के साथ ही मूल्यों पर भी नियंत्रण रहे।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
मार्गदर्शक विचार
चौबीस जुलाई को दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर श्री गुरबचन जगत का लेख ‘शिक्षा से ही टूटेगा डेरों और बाबाओं का तिलिस्म’ वर्तमान परिदृश्य का वास्तविक शाब्दिक चित्रण था। सम्पूर्ण लेख वर्तमान हकीकत को बयां करता है। देश में अंधविश्वास और पाखंड इतना अधिक बढ़ा हुआ है कि इसकी गिरफ्त में न केवल अनपढ़ व गरीब ही हैं बल्कि शिक्षित वर्ग भी इसकी चकाचौंध में फंसा हुआ है। इन पाखंडी धंधेबाजों ने अपने धंधे हाइटेक कर लिए हैं। असलियत यह है कि इन ढोंगियों के पास एक मनमोहक वाक कला के सिवाय और कुछ नहीं होता है। सुंदर लेख द्वारा जनता को जागरूक करने के लिए लेखक को साधुवाद!
सुरेन्द्र सिंह, महम
घातक है सुस्ती
हाल ही में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है कि भारत के लगभग 50 प्रतिशत लोग बहुत कम शारीरिक परिश्रम करते हैं। इसमें लगभग 42 प्रतिशत महिलाएं और 57 प्रतिशत पुरुषों को आलसीपन की श्रेणी में रखा गया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर व्यक्ति को रोज लगभग 20 मिनट के करीब कसरत करने की जरूरत होती है। आलस बहुत-सी जानलेवा बीमारियों को भी दावत देता है। आजकल बच्चे ज्यादातर अपना समय मोबाइल में व्यतीत करते हैं। इसलिए बच्चों को पढ़ाई के साथ खेलों में भी जरूर भाग लेना चाहिए, लेकिन खेलें ऐसी हों जिससे शरीर की कसरत भी हो।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर