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हरियाणवी को संबल
पंद्रह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल का ‘जीवंत रहे लोक मानस की धड़कन हरियाणवी’ लेख प्रांतीय बोली हरियाणवी के वर्चस्व को उन्नत करने का प्रयास रहा। सुझावपूर्ण विचार शैली काबिलेतारीफ रही। हरियाणवी बोली संस्कृति व पारंपरिक रीति-रिवाज को धरोहर के रूप में सहेज-संभाल सकती है। जनमानस से जुड़ी हरियाणवी भाषा के कवियों व लेखकों ने अपने सृजनात्मक साहित्य के माध्यम से अतुलनीय योगदान दिया है। दैनिक ट्रिब्यून का हरियाणवी साहित्य को मान-सम्मान देने का प्रयास प्रशंसनीय है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
भिक्षावृत्ति मुक्त भारत
तेरह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में हेमलता म्हस्के का लेख ‘भिक्षावृत्ति मुक्त भारत बनाने की राह में चुनौतियां’ विश्लेषण करने वाला था। भारत में भिखारियों की बढ़ती संख्या का मुख्य कारण शिक्षा का अभाव, सामाजिक असमानता, गरीबी, बेरोजगारी, अपंगता तथा कुछ गिरोहों द्वारा छोटे बच्चों का अपहरण करके उनसे भीख मंगवाना है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों को भिखारियों की स्थिति में सुधार व पुनर्वास की सिफारिश की है। इन लोगों में भिक्षावृत्ति के खिलाफ जागरूकता पैदा की जाए और उन्हें कोई व्यवसाय अपना कर आत्मनिर्भर होने का प्रशिक्षण दिया दिया जाना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
लोकतंत्र पर दाग
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में जिस तरह से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर गोली चली, वह इस लोकतांत्रिक देश के लिए चिंता की बात है। लोकतंत्र में जनता अपने मत के जरिए दूध का दूध, पानी का पानी कर देती है। जो उसकी कसौटी पर खरा उतरता है, उसको अपना आशीर्वाद देती है। ऐसे लोकतंत्र पर दाग लगाती है हिंसा। लोकतंत्र जैसी पवित्र दूसरी कोई भी व्यवस्था नहीं हो सकती है। चाहे अमेरिका वाले हो या भारत वाले, सबको समझना होगा।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
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