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आत्मघाती कटान
हर साल, वनों की कटाई से पृथ्वी का हरा-भरा आवरण कम होता जा रहा है। हिमालय क्षेत्र के वन और ग्लेशियर जल के प्राकृतिक भंडार कहे जाते हैं, लेकिन दोनों पर भी भारी संकट मंडरा रहा है। हिमालय क्षेत्र में लोग जंगल बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद सरकार विकास के नाम पर जंगल काट रही है। इसमें जलस्रोतों, जैव-विविधता आदि के संरक्षण का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। देहरादून में ‘खलंगा रिजर्व फॉरेस्ट’ को ‘सौंग वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट’ के नाम पर काटने की तैयारी चल रही है। हिमालय क्षेत्र में वनों में आग से लेकर वनों की कटाई तक ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां पर्यावरण संरक्षण के नाम पर संसाधनों का लगातार दोहन हो रहा है।
संगीत, जीजेयू, हिसार
आपात निगरानी तंत्र बने
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ क्षेत्र में सत्संग के समापन अवसर पर मची भगदड़, अव्यवस्था और अनियंत्रित भीड़ के कारण सैकड़ों श्रद्धालुओं की मृत्यु का समाचार मन को विचलित करने वाला रहा। इस घटना के लिए जिम्मेदार कौन होगा, इसकी विवेचना जरूरी है। आस्था के नाम पर भीड़ बेतहाशा बढ़ती जा रही है। राज्य सरकारों को चाहिए कि जब भी धार्मिक आयोजन किए जाते हैं, विशेष निगरानी तंत्र बनाएं। आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहे। यदि ऐसी घटना बार-बार होती रहे तो लोगों का सरकार और धार्मिक आयोजनों से विश्वास ही उठ जाएगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
लापरवाही से हादसा
हाथरस में सत्संग में भगदड़ मचने से हुई मौतें और भारी संख्या में लोगों का घायल होना एक बेहद संवेदनशील घटना है। भारी संख्या में सत्संग के लिए जुटी भीड़ की सुरक्षा के क्या पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए थे? अनुमति से ज्यादा लोगों का सत्संग में पहुंचना आयोजनकर्ताओं की लापरवाही दर्शाता है। सरकार को ऐसे कार्यक्रमों में पुलिस तैनात करनी चाहिए ताकि अफरातफरी का माहौल न बनने पाए। साथ ही बेवजह भगदड़ से किसी की जान न जाने पाए।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली