आपकी राय
संयम जरूरी
संपादकीय ‘तीसरी पारी’ में उल्लेख है कि फिलहाल मोदी सरकार के साथ दो बड़े घटक दल ही हैं। इनका रवैया कैसा रहेगा और मोदीजी या बीजेपी कैसे तालमेल बिठाएंगे, यह तो समय बताएगा। इन दलों के नीति और सिद्धांत में अंतर के साथ जनता से किए वादों में भिन्नता है। बावजूद इसके देश हित के मामलों में सरकार में सम्मिलित घटक दलों द्वारा सरकार से सहयोग करना जरूरी है। राजग सरकार को राज धर्म और गठबंधन धर्म में समन्वय स्थापित करने हेतु काफी कुछ सहना होगा, वरना पूर्ववर्ती गठबंधन की सरकारों के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
राष्ट्रहित में सोचें
दस जून के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘तीसरी पारी की तैयारी’ गठबंधन सरकार के धर्म और उसके निर्वहन के प्रति सजग करता लगा। भाजपा जिस उम्मीद से चुनाव लड़ी थी वह अपने लक्ष्य से कोसों दूर रह गई। फिर भी जनता ने उसके कामकाज को देखते हुए उसे इतना तो संबल दे ही दिया कि वह जनता से अपने वादे पूरे कर सके। सहयोगी दलों से सामंजस्य बिठाने के साथ ही भाजपा को साझा कार्यक्रम पर चलना होगा। सहयोगी दल भी स्वहित छोड़कर राष्ट्रहित को साधें तो यह गठबंधन के सभी दलों के लिए अनुकूल होगा।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
सूझबूझ की जरूरत
18वीं लोकसभा का स्वरूप सामने आ गया है। बदली परिस्थितियों से स्पष्ट है कि इस बार भाजपा द्वारा सहयोगियों को ज्यादा तवज्जो देनी होगी। माना जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने नई सरकार के गठन से पहले बिहार एवं आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा की बात कही है। वहीं समान नागरिक संहिता के प्रश्न पर दोनों नेताओं ने अपनी बात प्रधानमंत्री के समक्ष पहुंचा दी है। देश की नई सरकार का गठन बिना खास अड़चन के हो गया, लेकिन सरकार चलाने के लिए बेहद सूझबूझ की जरूरत है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली