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दागी नेता
भारतीय राजनीतिक पार्टियां ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारती हैं जिन पर पहले से ही आपराधिक मुकदमे दर्ज हों। एडीआर की मानें तो 18वीं लोकसभा चुनाव में जीतने वाले 46 प्रतिशत सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह चिंता का विषय है। वहीं 90 प्रतिशत सांसदों के पास अकूत संपत्ति है। सवाल उठता है कि क्या ऐसे आपराधिक छवि वाले सांसद लोकतंत्र की शुचिता को बरकरार रख पायेंगे। कानून तोड़ने वाले क्या लोकतंत्र की रक्षा कर पायेंगे। क्या ऐसे दागी सांसद ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन कर पायेंगे?
सौरभ बूरा, जीजेयू, हिसार
गठबंधन के खतरे
देश में पिछले कुछ समय से क्षेत्रीय दलों की बाढ़-सी आई है। यह लोकतंत्र और राष्ट्रीय पार्टियों के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है। ज्यादातर क्षेत्रीय दल लोगों को क्षेत्रीय भावनाओं में बहलाकर वोट बैंक बढ़ाने की कोशिश करते हैं, न की जनहित और देशहित मुद्दों पर ध्यान देते हैं। गठबंधन से बनी सरकार के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं। ऐसी सरकार कभी भी बेहतर फैसले नहीं ले सकती। वहीं भिन्न दलों के गठबंधन से बनी सरकारों का टूटने का डर रहता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
शान की सवारी साइकिल
दो जून के दैनिक ट्रिब्यून रविरंग अंक में रेणु जैन का ‘शान की सवारी साइकिल हमारी’ लेख शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक रहा। भागदौड़ की जिंदगी में मानव साइकिल चलाने की अपेक्षा डॉक्टरी इलाज से अपने आप को चुस्त-दुरुस्त रखने का पक्षधर है। जबकि साइकिल चलाना व्यायाम, प्रदूषण रहित, कम खर्चीला साधन, स्वास्थ्यवर्धक रामबाण है। विदेशी-स्वदेशी शारीरिक पहलुओं का जीवन उपयोगी विश्लेषण काबिले तारीफ रहा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
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