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अतार्किक बहस
लोकसभा चुनाव में ‘धर्म के आधार पर आरक्षण’ एक बड़ी चुनावी चर्चा और बहस का मुद्दा रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा इस मुद्दे पर जोरदार बहस देखने को मिली है। भाजपा ने मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए कांग्रेस एवं विपक्षी दलों को कटघरे में खड़ा किया है। इसके उलट कांग्रेस और विपक्षी दलों ने ओबीसी आरक्षण में मुस्लिम समाज की उपेक्षित जातियों को शामिल करने की दलील दी है। इसी तरह से ओबीसी आरक्षण की राज्यवार सूची देखें तो उसमें मुस्लिम समाज की भी भागीदारी दिखाई देती है। यह बहस बेमानी है। संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि धर्म आधारित समुदाय को आरक्षण का लाभ दिया जा सके।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
समरसता बरकरार रहे
तीस मई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘चुनावी नफे-नुकसान के गणित में न झुलसे समरसता’ राजनेताओं द्वारा गैर-जिम्मेदार, असंवैधानिक तथा विभाजनकारी राजनीति करने की बातें सामने आई हैं। चुनाव जीतने के लिए धर्म तथा जाति का खूब इस्तेमाल किया गया। वहीं चुनाव आचार-संहिता का उल्लंघन करके बड़े-बड़े राजनेताओं ने जो कुछ कहा उसके बारे में चुनाव आयोग निष्क्रिय बना रहा। लेकिन मीडिया ने कहीं भी समरसता-सद्भाव की खबरों का जिक्र नहीं किया। हमें अपनी बहुरंगी संस्कृति को बचा कर रखना है।
शामलाल कौशल, रोहतक
सिर्फ राजनीति
मोदी सरकार द्वारा किए गए कार्य और गत 10 वर्षों में संविधान के विषय में एनडीए सरकार का रवैया देखते हुए देश में संविधान में हेराफेरी की कोई शंका नहीं है। लेकिन मनमाने ढंग से जोड़ी गई धाराएं संविधान के साथ किया गया अन्याय है। अगर मूल संविधान से की गई छेड़छाड़ को पुनः व्यवस्थित किया जाता है तो यह वास्तविक संविधान का संरक्षण होगा। आज अधिकांश जनता बेहतर जानती है कि संविधान के साथ किसने क्या किया है।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.