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पुनर्विचार जरूरी
पच्चीस मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘अग्निपथ की तपिश’ अग्निपथ की योजना का विश्लेषण करने वाला था। सेना में भर्ती का यह प्रयोग व्यावहारिक नहीं है। कांग्रेस ने चुनावों में इसका प्रयोग सरकार के खिलाफ किया और वादा किया कि उनकी सरकार आएगी तो सेना में भर्ती की पुरानी पद्धति को शुरू कर दिया जाएगा। सेना में भर्ती की इस पद्धति में युद्ध में मरने वालों को शहीद का दर्जा नहीं मिलेगा, पेंशन तथा अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलेगी। बेशक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस पर पुनर्विचार का आश्वासन दिया है। इसके बावजूद नौजवानों के मन में सेना में अग्निपथ की प्रणाली के खिलाफ भारी रोष है इस पर तुरंत पुनर्विचार करने की जरूरत है।
शामलाल कौशल, रोहतक
ज़िंदगी से खिलवाड़
सताईस मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘स्वाह हुई मासूम ज़िंदगियां’ राजकोट तथा दिल्ली में लापरवाही तथा आग बुझाने की समुचित व्यवस्था न होने का विश्लेषण करने वाला था। राजकोट में गेम जोन को चलाने की फायर विभाग की अनुमति नहीं थी। आग लगने के समय वहां पर वेल्डिंग का काम चल रहा था। इसी तरह दिल्ली में विवेक विहार में बेबी केयर सेंटर में ऑक्सीजन सिलेंडरों की भंडारण व्यवस्था सही नहीं थी। ऐसा लगता है कि हमने डबवाली कांड से कुछ नहीं सीखा। उपर्युक्त घटना को ध्यान में रखते हुए दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
रिकॉर्ड का इंतजार
‘क्या फिर नए रिकार्ड की ओर इंदौर’ लेख पढ़ा, जिसमें भाजपा उम्मीदवार को हासिल मत और नोटा को मिलने वाले रिकार्ड मतों का जिक्र है। कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति द्वारा अंतिम समय में नाम वापस लेने का कारण उनको पार्टी की तरफ से फंड नहीं मिलना, रैली और भाषण के लिए समय नहीं मिलना, उन पर पुराने पुलिस केस की फाइल का खुलना बताया गया। वैसे कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए कोई योग्य उम्मीदवार भी नहीं मिल रहा था। यहां भाजपा की जड़ें इतनी मजबूत हैं जिसके सामने कोई भी कांग्रेसी अपनी राजनीतिक बलि देना नहीं चाहता था। यहां पर मेयर, विधानसभा सीटें, लोकसभा में सांसद सभी भाजपा के हैं। देखते हैं 4 जून को क्या रिकार्ड टूटता है।
भगवानदास छारिया, इंदौर