मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

आपकी राय

06:24 AM May 23, 2024 IST

जागने का वक्त
अठारह मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘तपती जिंदगी’ गर्मी के कहर का वर्णन करने वाला था। हर साल गर्मी के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। यह सब ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव है, जिसका समाधान हम अभी भी नहीं ढूंढ़ रहे। ग्लोबल वार्मिंग के चलते कहीं तापमान 50 तक चला गया है तो कहीं विनाशकारी बाढ़ें आ रही हैं। हमने प्रकृति के अनुरूप रहन-सहन, खानपान तथा पौधारोपण छोड़ दिया है। आर्थिक विकास की अंधी दौड़ में वनों को काट रहे हैं। विश्व के अनेक भागों में युद्ध हो रहे हैं जिससे घातक गैसें तथा गर्मी ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही है। स्थिति को विकट बनने से रोकने के लिए पौधारोपण युद्धस्तर पर शुरू करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक

Advertisement

तालाबों का निर्माण
आज गिरते भूमि जल स्तर के चलते अब खेती करना भी मुश्किल होता जा रहा है। स्वच्छ पानी मिलना अब दूर की बात होती जा रही है। शहरों में तो नये तालाबों के निर्माण के लिए जगह की कमी भी आड़े आ सकती है। लेकिन शहरों के आसपास के गांवों के किसानों को तालाबों के निर्माण तथा उससे होने वाले फायदों के प्रति जागरूक करना होगा। सरकार और प्रशासन उचित जमीन पर तालाबों का निर्माण करे। तालाबों के निर्माण होने से भूजल पर सकारात्मक असर तो पड़ेगा ही, पर्यावरण पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव होगा।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

आप पर आंच
बीस मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘मालीवाल के सवाल’ सांसद स्वाति मालीवाल के साथ मारपीट किए जाने के बाद हो रही राजनीति को उजागर करने वाला था। आप का आरोप है कि मालीवाल को मोहरा बनाकर पार्टी की छवि धूमिल करने की कोशिश की जा रही है। महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ करने की बात सभी राजनीतिक दलों पर लगाई जा सकती है। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार आज भी जारी है। लेकिन सभी खुद को बेकसूर तथा दूसरे को दोषी मानते हैं। मालीवल मामले में निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा कि वास्तविकता क्या है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

Advertisement

Advertisement