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तल्खी के बोल
चाई मई के दैनिक ट्रिब्यून में श्याम सरन का लेख ‘गंगा-जमुनी संस्कृति पर चोट करते तल्खी के बोल’ में राजनीतिक दलों ने जिस तरह से गैर-संवैधानिक तथा गैर-जिम्मेदाराना भाषा का प्रयोग करना शुरू किया है उसको लेकर राजनेताओं को कटघरे में खड़ा करने वाला था। भारत की संस्कृति तथा परंपरा गुलदस्ते में रखे हुए विभिन्न प्रकार के फूलों की तरह है। भारत की संस्कृति की खूबी विभिन्न धर्मों, जातियां, क्षेत्रों आदि के इकट्ठे रहने को लेकर ही है। भारत विश्व में प्रभावी इसलिए है क्योंकि यहां विश्व के अनेक धर्म संस्कृतियों को जगह मिली हुई है। चुनाव जीतने के लिए जो दल विभिन्न संप्रदायों में जहर घोल रहे हैं, क्या चुनाव समाप्त होने के बाद सब सामान्य हो जाएगा?
शामलाल कौशल, रोहतक
विवाह ही रहने दो
सात मई के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘विवाह की गरिमा’ निश्चय ही आज के बदलते परिवेश में विवाह आयोजन के बढ़ते खर्चों की तरफ इशारा करता है। हिंदू धर्म के अनुसार विवाह एक संस्कार है जो पति-पत्नी के अग्नि के चारों तरफ फेरे लेने से सम्पन्न होता है। आज के युवा ने इसे खर्चीला और दिखावा मात्र बना दिया है। इससे वधू के माता-पिता पर पैसों का अतिरिक्त भार के साथ साथ भोजन भी व्यर्थ जाता है। शादी को साधारण तरीके से मंदिर में फेरे लेकर कोर्ट में पंजीकृत करा कर इसे संस्कार ही रहने दें। इसे पार्टी और मौज मस्ती का रूप न दें।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
बुजुर्गों का इलाज
भाजपा के चुनावी संकल्प पत्र के अनुसार उनके जीतने पर वृद्ध अब सत्तर वर्ष के पूरे होने पर भी आयुष्मान योजना के तहत फ्री में इलाज करवा सकेंगे। वहीं पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र वाले भी जिनकी कोई बीमा पॉलिसी नहीं है, वे पॉलिसी ले सकेंगे। भारत में प्राइवेट अस्पतालों में इलाज बहुत महंगा है, वहीं सरकारी अस्पतालों का ढांचा बेहद कमजोर है। अतः अब बुजुर्गों का जीवन इलाज की चिंता से मुक्त हो सकेगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर