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शिकंजे का तोड़
तीस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में देवेंद्र शर्मा का लेख ‘किसानों पर शिकंजे जैसा है ‘फ्री ट्रेड’ फॉर्मूला’ विषय पर चर्चा करने वाला था। जर्मनी समेत यूरोप के कई देश फ्री ट्रेड के खिलाफ हैं। अमेरिका अपने किसानों को तो भारी सब्सिडी देकर कृषि उत्पादन सस्ते करके विकासशील देशों में निर्यात करवाता है परंतु भारत जैसे विकासशील देशों में इन कृषि पदार्थों को सब्सिडी दिलवाने तथा एमएसपी दिलवाने का विरोध करता है। फ्री ट्रेड विकासशील देशों को अमेरिका आदि देशों से सस्ते निर्यात द्वारा कृषि का ढांचा ध्वस्त कर रहा है। भारत को अपने हितों को ध्यान में रखकर किसानों को न केवल सभी कृषि उत्पादों के ऊपर एमएसपी देनी चाहिए बल्कि कृषि को अधिक से अधिक सब्सिडी देकर कृषि को लाभकारी बनाना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
उपेक्षित श्रमिक
एक मई मजदूर दिवस पर विश्व के मजदूरों को एक संदेश दिया जाता है कि तमाम देशों की सरकारें आपके साथ हैं। अभी तक सरकारों द्वारा किए गए कार्यों, योजनाओं का आकलन करना चाहिए। भारत में मजदूर वर्ग की परेशानियों का कोई अंत नहीं है। केंद्र की सरकार हो या राज्य सरकार, सभी में शोषणकारी ठेकेदारी प्रथा को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। ठेकेदार द्वारा मजदूरों का शोषण होता है। यह सर्वविदित है कि मजदूरों को उचित और निर्धारित पारिश्रमिक मूल्य तक नहीं दिया जाता है। स्वास्थ्य सेवाएं एक सीमित दायरे में दी जाती हैं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
खतरनाक संकेत
कनाडा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की मौजूदगी में खालिस्तान समर्थक नारे लगना भारत के लिए चिंता का सबब है। वहां का प्रशासन तंत्र, शासन के इशारे पर और वोटों की राजनीति के चलते पूरी तरह से खालिस्तानियों का शरणागाह बन चुका है। भारत सरकार को ही अब कनाडा से सख्ती के साथ पेश आना होगा। वहां पढ़ने और नौकरी करने जाने वाले युवाओं को भी सचेत करना होगा।
सुभाष बुडावनवाला, रतलाम, म.प्र.
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