आपकी राय
मौज मस्ती का रुझान
बाईस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा का ‘कमाऊ युगलों में बिना संतान मौजमस्ती का रुझान’ लेख बताता है कि देश में कामकाजी युवा पति-पत्नी संतान पैदा करने के बजाय घूमना फिरना, मौजमस्ती करना, कुत्ते-बिल्लियां पालकर जीवन व्यतीत करना बेहतर समझते हैं। संतान की परवरिश करना उनकी अपनी खुशियों में बाधा है। शिक्षित वर्ग का यह रुझान जन्म दर में कमी ला रहा है। परिवार में संतान का होना मां-बाप में सहयोग तथा खुशी की भावना पैदा करता है। यह लोग नहीं जानते कि बुढ़ापे में संतान जो सहायता कर सकती है, उसकी कमी धन द्वारा पूरी नहीं की जा सकती।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
कामकाज की समीक्षा
बीस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में दिनेश सी. शर्मा का लेख ‘दवा नियामकों के कामकाज की समीक्षा जरूरी’ लोगों को सचेत करने वाला था। पतंजलि आयुर्वेद द्वारा डायबिटीज, एड्स, कैंसर आदि का इलाज करने का आश्वासन लोगों को भ्रमित करने वाला है। इस प्रकार के भ्रामक विज्ञापन के खिलाफ आईएमए ने इसकी सुप्रीमकोर्ट में शिकायत भी की। असाध्य रोगों के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन रोकने के लिए कानून तो हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हो पाता। आवश्यकता है कि उन कानूनों पर सख्ताई से अमल करवा कर दोषियों को दंडित किया जाए।
शामलाल कौशल, रोहतक
मतदान करें
मतदान लोकतंत्र का महान पर्व है लेकिन बीते सालों में जिस तरह इसमें विषमताएं उभरी हैं उससे इसकी पवित्रता पर उंगलियां उठी हैं। राजनेता पांच साल तक अपने क्षेत्रों की सुध नहीं लेते लेकिन चुनाव आते ही जनसेवक बनने का ढोंग रचने लगते हैं। चुनाव के समय वादों से नैया पार लगती नहीं दिखती तो खरीद-फरोख्त कर अपना स्वार्थ पूरा कर लेते हैं। इससे लोकतंत्र आहत होता है। मतदाता स्वाभिमानी रहे और योग्य प्रत्याशी को ही अपना अमूल्य मत दे तो ऐसी परंपरा पर अंकुश लगाया जा सकता है।
अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.