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सज़ा का प्रावधान हो
नौ अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में नरेश कौशल के प्रकाशित लेख ‘ऑनलाइन स्वाद के ज़हरीले सच की जवाबदेही’ ज्वलंत मुद्दे का विश्लेषण करने वाला था। आधुनिक समय में ऑनलाइन खाना मंगवाना एक फैशन बन चुका है। वैसे ऑनलाइन सामान में अधिकतर गुणवत्ता और साफ-सफाई की अनदेखी देखी जा सकती है। ऐसे मामलों में होने वाली घटनाओं को दबा दिया जाता है। यदि ऑनलाइन स्पेशल आर्डर पर मंगवाए जाने वाले केक की गुणवत्ता का यह हाल है तो अन्य खाने की चीजें कितनी शुद्ध होंगी। ऐसे दोषियों पर सख्त कार्रवाई व सज़ा का प्रावधान जरूरी है।
मुकेश विग, सोलन
रोग की वजह
आज स्वास्थ्य के प्रति लोग लापरवाह हैं। खान-पान रहन-सहन सब कुछ पाश्चात्य संस्कृति को भेंट चढ़ चुका है। देर रात तक जगना और दोपहर तक सोये रहना एक संस्कृति बन चुकी है। यही वजह है कि लोग कम उम्र में बड़ी बीमारियों के शिकार बन रहे हैं। डिब्बाबंद खाने से जीवन में बीमारियों की शुरुआत होती है। योग से कई मृत्युकारक रोग नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्म मुहूर्त का जागरण और तामसी खानपान का त्याग निरोगी जीवन की दूसरी जरूरत है। जब तक लोग स्वदेशी पद्धति से जीवन यापन नहीं करेंगे बीमारियों के जाल में उलझे रहेंगे।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
खतरनाक संकेत
ईरान द्वारा इस्राइल पर ड्रोन हमले के बाद उसके मंत्री चेतावनी दे रहे हैं कि इस्राइल के हर हमले का मुंहतोड़ जवाब देगा। वह ऐसे अस्त्रों का प्रयोग करेगा जो अब तक किसी ने प्रयोग नहीं किए हैं। लगता है कि ईरान परमाणु देश बन चुका है और उसने कुछ ऐसी नई तकनीक भी विकसित कर ली है जो विश्व में किसी अन्य देश द्वारा नहीं बनाई गई हो। यदि ईरान ऐसी बातें कर रहा है तो जाहिर वह अपने नए हथियार का प्रदर्शन करने को बेताब है।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
अमर्यादित भाषा
चुनावों के चलते पिछले कुछ दिनों से प्रत्याशियों द्वारा अपने विरोधियों पर अभद्र टिप्पणियां की जा रही हैं। क्या देश की संस्कृति की यही पहचान बाकी रह गई है। इस पर रोक अवश्य लगनी ही चाहिए। इस मामले में चुनाव आयोग सख्ती दिखाये और ऐसी भाषा का प्रयोग करने वाली पार्टी को खारिज करे। यदि आयोग ऐसे उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द करे तो अमर्यादित भाषा पर लगाम लगेगी!
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
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