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सत्ता की राजनीति
जब-जब भी चुनावों का मौसम देश में आता है, दल-बदल का लोकतंत्र विरोधी खेल चलता ही है। चुनाव के बाद न नेता दिखाई देते हैं न जनता की कोई चिंता करते हैं। इन दिनों कुछ नेताओं ने भगत सिंह की फोटो केजरीवाल के साथ लगाने पर जो बवाल मचाया है, एक दम सारहीन है। क्या देश के नेता और जागरूक जनता नहीं जानती कि कुछ ऐसे भी तथाकथित अहिंसावादी नेता हैं जिन्होंने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की फांसी पर रोक लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। ऐसे भी नेता हैं जो वीर सावरकर की कुर्बानी को कम करके आंकते हैं। अच्छा हो इनको सत्ता के शिखरों से दूर किया जाए और इनकी फोटो न लगाई जाए।
लक्ष्मीकांता चावला, अमृतसर
नवजीवन का संचार
सात अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून के रविवारीय अंक में सत्यवीर नाहड़िया की प्रस्तुति राग-रागनी में भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत एवं चैत्र मास की महिमा को सुन्दर ढंग से पिरोया है। भारतीय जीवन पद्धति एवं संस्कृति में तीज़-त्योहार का सभी ऋतुओं के साथ घनिष्ठ संबंध रहता है और उनका वैज्ञानिक महत्व है। इसी प्रकार से भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत में प्रकृति एवं वातावरण में चारों ओर खुशहाली छाई रहती है। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान अपनी फसल को घर लाकर खुशी मनाता है। सच्चे अर्थों में चैत्र मास में मनुष्य के शरीर में खून का संचार होता है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
नशे का प्रलोभन
देश में चुनावी वातवरण बन चुका है। आने वाले दिनों में यह सिलसिला अपने चरम पर होगा। सभाओं में अपने नेताओं के लिए अधिकाधिक भीड़ जुटाना पार्टी कार्यकर्ताओं की प्राथमिकता होती है। फिर भी इस कार्य के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। आमजन को तरह-तरह के प्रलोभन दिये जाते हैं। इस प्रलोभन में शराब सबसे अहम बन चुकी है। बेशक यह काम छुपाकर किया जाता है। देश के कर्णधारों द्वारा फैलाई जा रही नशाखोरी की यह बुराई किसी भी समाज के पतन का कारण बन सकती है।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
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