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मन की खुशी
दो अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘खुशी का पैमाना’ के अंतर्गत वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार 140 देशों में खुशी को लेकर भारत का 126वां नंबर है। खुशी के मापदंड अलग-अलग हो सकते हैं। आर्थिक विकास खुशी का मापदंड नहीं। अगर ऐसा होता तो अमेरिका के लोग सबसे ज्यादा खुश होते। खुशी को लेकर छोटे-छोटे देश फिनलैंड, आइसलैंड तथा डेनमार्क बाजी मार गए। खुशी का कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं हो सकता। पश्चिमी देशों के मुकाबले में परिवार से जो इज्जत और देखभाल भारत के बुजुर्गों को मिलती है उससे वे बहुत खुश हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
पराभव रोकें
आज की युवा पीढ़ी अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेदार नहीं है चाहे वह आर्थिक, पारिवारिक, शैक्षणिक या कोई और जवाबदारी हो। बड़ी संख्या में युवा नशे में डूबे हैं। लड़कियां भी नशे के मामले में लड़कों के समकक्ष हैं। नशा सबसे बड़ा कारण है अवसाद का जिसके चलते प्रतिभावान युवा भी पतन की ओर जा रहे हैं। जवाबदारी का बोध और नशे से मुक्ति से ही युवाओं की दशा और दिशा बदल सकती है। माता-पिता को भी अपने होनहारों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
सख्त संदेश दें
चीन ने अरुणाचल प्रदेश में तथाकथित ‘मानकीकृत’ भौगोलिक नामों की एक सूची जारी कर 30 स्थानों का नाम बदला है। पिछले सात वर्षों में ऐसी चौथी सूची जारी करने के बाद चीन झूठ दोहराने की कोशिश कर रहा है। बेशक विदेश मंत्रालय ने चीन के दावों को खारिज किया है। समय आ गया है कि भारतीय अधिकारी इस मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझाने के लिए कड़े कदम उठाएं।
भृगु चोपड़ा, जीरकपुर
मर्मस्पर्शी कहानी
इकतीस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में हंसा दीप की ‘पाती’ कहानी पढ़ कर आंखें नम हो गयीं। दुल्हन बनी बेटी के प्रति नये परिवेश में पिता के स्नेही बंधन का दर्द हर शब्द में प्रस्फुटित हो रहा था। करुण रस में भीगी वाक्य विन्यास शैली आद्यंत रोचक थी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
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