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जनसंख्या संतुलन
अट्ठाईस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में अखिलेश आर्येन्दु का लेख ‘आबादी असंतुलन से उपजे संकट की आहट’ दुनिया के विभिन्न देशों में आबादी के कम होने से वृद्धजनों की संख्या में वृद्धि और काम करने वाले युवाओं की संख्या में कमी के कारण पैदा होने वाली समस्याओं का विश्लेषण करने वाला था। भारत में लिंग अनुपात में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियां कम हैं जिससे विवाह की समस्या पैदा हो रही है। बच्चों के देरी से पैदा होने तथा रोजगार की समस्या पैदा हो रही है। कई राज्यों में तो बेरोजगारी की समस्या एक चुनौती बनी हुई है। इस समय विश्व के अनेक देशों की तरह भारत में भी विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए जनसंख्या में संतुलन बनाए रखने की जरूरत है।
शामलाल कौशल, रोहतक
छात्रों का मार्गदर्शन
इस समय दसवीं-बारहवीं के छात्र असमंजस में हैं कि आगे क्या करें। न तो प्रतियोगिता परीक्षा का अता-पता है, न ही भविष्य का कुछ प्लान। ऐसे में सभी अपने जीवन के कीमती साल बचाने की जुगत में हैं। सरकार को चाहिए कि कुछ ऐसी योजना बनाए कि बच्चों का कीमती साल भी बेकार न हो व उनका एडमिशन भी उनकी मनचाही स्ट्रीम में हो जाये। इस समय अभिभावकों व टीचर्स की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों का सही मार्गदर्शन करें। उन्हें मानसिक तनाव से बचायें।
विनय मोहन खारवन, जगाधरी
विसंगतियों का बदलाव
चौबीस मार्च के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में दिनेश कर्नाटक की ‘नई वाली होली’ कहानी शिक्षाप्रद व प्रेरणादायक रही। रंगों का पर्व होली प्रेम, एकता, सौहार्दपूर्ण सद्भावना का सूत्रपात करता है। अब रीति-रिवाज, नैतिक मूल्यों में भौतिक कृत्रिमता व आडंबर का बोलबाला है। रसायन मिश्रित रंग, गुलाल बदरंग चेहरों पर दागनुमा असर छोड़ने लगे हैं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल