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आत्मनिर्भर बनाएं
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, सभी छोटे-बड़े राजनीतिक दल आम जनता काे मुफ्त सुविधाएं देने की बातें कर रहे हैं। यद्यपि देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी यह मुफ्तखोरी अथवा रेवड़ियां बांटने को सही नहीं कहा। प्रश्न है कि क्या देश के किसी भी राजनीतिक दल में यह कहने की योजना है कि भविष्य में उनकी सरकार आएगी तो किसी को भी मुफ्त में कुछ लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। जनता आर्थिक दृष्टि से इतनी मजबूत हो जाएगी कि वह मुफ्त नहीं लेगी, रोजगार सरकार देगी और जनता अपनी मेहनत की कमाई से ही अपनी जरूरतें पूरी करेगी। इस मुफ्तखोरी ने जनता को उन्नति की दौड़ से बहुत पीछे छोड़ दिया है।
लक्ष्मीकांता चावला, अमृतसर
जल संरक्षण की पहल
छह मार्च को दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘साफ पानी क्यों नहीं बनता चुनावी मुद्दा’ लेख हमारी सूखती नदियों, गिरते भूजल स्तर, लुप्त होते तालाब भविष्य में गम्भीर जल संकट का विश्लेषण करने वाला था। जब तक प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण नहीं होगा, शुद्ध जल सम्भव नहीं हैं। प्रदूषित जल रोगों का कारण बनता जा रहा है। गंगा हो कि युमना जल स्तर घटता जा रहा है और प्रदूषण बढ़ता जा रह है। प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण जब समाज के हाथों में था तो ये पवित्र और पूजनीय थे। सरकारी नियंत्रण वाली परियोजनाएं केवल भ्रष्टाचार का माध्यम हैं।
राजकुमार सांगवान, चरखी दादरी
आत्ममंथन करें
चार मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में राजेश रामचंद्रन का लेख ‘कांग्रेस हाईकमान के लिए असहज स्थिति’ में गहरे विचार यही कहते हैं कि हिमाचल में कांग्रेस को आत्ममंथन करना चाहिए। अपनी कमियों को दूर करना चाहिए। हर बात का दोष भाजपा पर मढ़ना क्या सही है? एक राज्यसभा सीट गई तो उस पर विचार-सुधार होना चाहिए। हिमाचल के लोगों को तानाशाही पसंद नहीं है। बागियों के पुतले जलाना भी कोई समाधान नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री की मूर्ति लगाने में परेशानी नहीं होनी चाहिए।
मुकेश विग, सोलन, हि.प्र.