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मांग की तार्किकता
किसानों की ओर से लगातार एमएसपी को लेकर कानून बनाने की मांग की जा रही है। किसान मांग को पूरा करने के लिए शंभू बार्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान नेताओं का यह ऐलान करना कि जब तक दिल्ली जाने की इज्जत नहीं मिलती वह शंभू बॉर्डर पर पक्का धरना देंगे, चिंता का विषय है। आम लोगों को इसके कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, दूसरी ओर सरकार को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। यातायात पर इसका असर पड़ रहा है जो कि दोनों राज्यों के सीधे व्यापार से संबंधित है। क्या किसानों का यह फैसला सही है? सरकार एमएसपी के लिए पैसा कहां से लाए, यानी टैक्स बढ़ाए? इसका बोझ भी आम आदमी की जेब पर ही पड़ेगा।
हरदेव सिंह, राजपुरा
चुनावी मुद्दा बने
छह मार्च के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘साफ पानी क्यों नहीं बनता चुनावी मुद्दा’ नेताओं से यह सवाल पूछने वाला था। लेखक के अपने अमेरिकी दौरे के दौरान उन्होंने देखा कि होटल के बाथरूम का पानी इतना साफ है कि पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि हमारे देश में आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी लोगों को शुद्ध पीने का पर्याप्त पानी नहीं मिलता। आश्चर्य होता है कि स्वच्छ पीने का पानी सत्तापक्ष तथा विपक्ष का चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता। पीने का पानी, गुणवत्ता वाली शिक्षा, बेकारी तथा महंगाई पर नियंत्रण चुनावी मुद्दे बनने चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
संदेशखाली का संदेश
पश्चिम बंगाल पिछले दिनों संदेशखाली हिंसा की आग में झुलसता रहा है। संदेशखाली इस वक्त पश्चिम बंगाल में पॉलिटिक्स का बड़ा केंद्र बन चुका है। भाजपा संदेशखाली में महिलाओं के साथ हुए दुराचार के मुद्दे को छोड़ नहीं रही है। ममता बनर्जी भी बड़ी होशियारी से इस मुद्दे को बढ़ावा नहीं देने दे रही है। देखना है कि संदेशखाली की हिंसा को हाइलाइट करने के बदले में भाजपा बंगाल में बढ़त ले पाती है या नहीं।
मनमोहन राजावतराज, शाजापुर