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आवाज़ का जादूगर
बाईस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में जाहिद खान का लेख ‘एक दिलकश आवाज का यूं खामोश होना’ रेडियो की आवाज के बादशाह, अमीन सायानी के बारे में संवेदनशील भावनाओं का वर्णन करने वाला था। जब वह रेडियो पर यह कहते थे— बहनो और भाइयो! लोगों की आत्मा के साथ जुड़ जाते थे। इनके फिल्म इंडस्ट्री में विभिन्न लोगों से निकटतम संबंध थे। तबस्सुम के साथ मिलकर एक कार्यक्रम भी पेश करते थे। उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया!
शामलाल कौशल, रोहतक
सामाजिक विसंगति
अठारह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में कुलबीर बड़ेसरों की सुभाष नीरव द्वारा अनूदित ‘सफेद रंग स्याह रंग’ कहानी जीवन की झूठी शानो-शोकत से पर्दा हटाने वाली रही। कथा नायिका का प्रभावशाली व्यक्तित्व असलियत में मुखौटा था। समाज में महिला-पुरुषों को निजी अपने गिरेबान में झांकने का समय ही नहीं मिलता। उनके पद गरिमा के एकांगी दृष्टिकोण में वैचारिक-चारित्रिक धरातल पर सहयोगी कर्मचारी भी बौने लगते हैं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल