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चंदे पर चपत
सोलह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘चंदे के धंधे पर नकेल’ सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बाॅन्ड पर प्रतिबंध लगाने का जो फैसला किया है उससे सरकार को बड़ा झटका लगा है। इससे पहले सरकार ने इन बांडों से प्राप्त धनराशि को सार्वजनिक न करने का ऐलान किया था। कोर्ट के आदेशानुसार अब तक जितनी धनराशि चुनावी बॉन्डों से प्राप्त हुई है इसकी सूचना चुनाव आयोग को देने के साथ-साथ वेबसाइट पर भी सार्वजनिक करनी होगी। असल में सरकार को कॉर्पोरेट से चुनावी बांड के द्वारा धन प्राप्त होता था और उसके बदले में सरकार उनको उनके काम-धंधे में सहायता करती थी। उपर्युक्त फैसले से अब चुनाव के लिए पर्याप्त धन जुटाने में दिक्कत आएगी।
शामलाल कौशल, रोहतक
पारदर्शी लोकतंत्र के लिए
‘चंदे के धंधे पर नकेल’ संपादकीय लेख में जनवरी 2018 में शुरू हुए इलेक्टोरल बॉन्ड से दिए गए चंदे से उठे सवालों पर मंथन हुआ। चिंता थी कि कई कारोबारी कंपनियां अपनी अनुचित बातों के लिए सरकार पर दबाव नहीं बना दें। सूचना के अधिकारों के अंतर्गत नामों को उजागर नहीं करना भी प्रतिबंध का कारण बना। जिस कारण सुप्रीमकोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया है। अब इकतीस मार्च तक ये जानकारी उजागर करनी होगी कि किस पार्टी को कितना चंदा किससे मिला है। काला धन काबू करने के अन्य उपाय भी करने होंगे।
भगवानदास छारिया, इंदौर
सकारात्मक बदलाव
प्रधानमंत्री मोदी और यूएई राष्ट्रपति की बैठक में निवेश सुरक्षा पर हुए समझौते की संभावना उत्साहवर्धक है। इससे न सिर्फ निवेश बढ़ेगा, बल्कि ऊर्जा, बंदरगाह, डिजिटल सहयोग जैसे क्षेत्रों में भी प्रगति होगी। समझौता मजबूत संबंधों को और मजबूती देगा। आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और दोनों देशों के नागरिकों के लिए लाभदायक साझेदारी का मार्ग प्रशस्त करेगा।
तौकीर रहमानी, मुंबई