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आर्थिकी की तस्वीर
तीन फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में मधुरेंद्र सिन्हा का लेख ‘पूर्ण बजट में उभरेगी आर्थिकी की असली तस्वीर’ केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा पेश किये गये बजट का विश्लेषण करने वाला था। वित्त मंत्री द्वारा रेवड़ियां न बांटने, टैक्सों में किसी प्रकार के बदलाव से बचते हुए, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने की कोशिश की गयी है। आयकर के पुराने मामलों को भी निपटाने की बात कही है। वहीं कृषि क्षेत्र के उच्च वर्ग को भी आयकर के दायरे में लाने का सुझाव दिया है। पूर्ण बजट तो चुनावों के बाद जुलाई में पेश किया जाएगा, तभी अर्थव्यवस्था की पूर्ण तस्वीर सामने आएगी।
शामलाल कौशल, रोहतक
अवमूल्यन का चित्र
अठाईस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की ‘तब और अब’ कहानी अतीत की यादों का विश्लेषण करने वाली रही। पद की गरिमा के विपरीत व्यक्ति अपने अतीत को भूल जाता है। उसकी जीवनशैली, व प्रवृत्तियां अतीत के आत्मीय संबंधों को कुरेदने में अपनी तौहीन समझती है। कथा की पात्र किरण सिंह अपने सहपाठियों के साथ बदला रवैया ‘तब और अब’ के जरिये व्यावहारिक, सामाजिक, नैतिक मूल्यों में क्षरण को दर्शाता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
प्रजातंत्र के प्रतिकूल
नीतीश कुमार द्वारा एक बार फिर पाला बदलकर मुख्यमंत्री बनने का घटनाक्रम सामने आया है। भाजपा के साथ नए गठबंधन सहयोगी के रूप में अगली सरकार बनाने का दावा भी पेश किया है। नीतीश का यह नौवां मुख्यमंत्री कार्यकाल होगा। राजनीतिक विश्लेषक जरूर इस पर चर्चा करें कि क्या बीजेपी और जनता दल (यू) को इससे फायदा होगा। लेकिन बिहार की जनता को इस पर जरूर व्यापक बहस करनी चाहिए। सत्ता की लोलुपता चरम पर है, इसलिए देश की जनता को यह समझना होगा कि यह न तो भारत के लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही राज्य की प्रगति के लिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
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