आपकी राय
धर्मविहीन राजनीति
सत्रह जनवरी का विश्वनाथ सचदेव का ‘जीवन संवारने का माध्यम ही बना रहे धर्म’ लेख पढ़कर लगा कि आज वाकई देश में धर्मविहीन राजनीति की बड़ी जरूरत है। राजनेता धर्म की आड़ लेकर जनता को उल्लू बनाकर अपना मतलब सिद्ध करते रहे हैं। ऐसे में समाज में वैमनस्यता पैदा होना स्वाभाविक ही है। राम मंदिर को लेकर जिस तरह के सकारात्मक माहौल की जरूरत थी वह खुद ब खुद बनने लगा है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
चीन के जाल में
मालदीव के राष्ट्रपति ने मोदी के लिए अपमानजनक टिप्पणी करने वाले अपने पहले तीन मंत्रियों को निलंबित कर दिया था। फिर अपनी चीन यात्रा के बाद चेतावनी देते हुए भारतीय सेना को मार्च तक हटा लेने को कहा। अंततः मालदीव को चीन अपने कुटिलता के जाल में फंसाने में कामयाब हुआ। वह मालदीव को ब्याज पर कर्ज देकर आर्थिक रूप से कंगाल बनाकर उसे हड़पने की कोशिश करेगा। जब तक मालदीव को होश आएगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी!
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
बसपा की चाल
‘हाथी की सीधी चाल’ संपादकीय में मायावती की पार्टी बसपा का अकेले ही चुनाव लड़ने का संकल्प सभी अन्य दलों को चौंका दिया है। चार बार उ.प्र. की मुख्यमंत्री रही मायावती का जनाधार तो यूपी में कमजोर हो ही गया है। ऐसे में उन्हें उ.प्र. में अधिक सीटें मिलने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन उनका अकेले लड़ना भाजपा के लिए लाभकारी होगा। जिस तरह से मायावती ने गठबंधन से पीछा छुड़ाया है उसने हाथी को अपनी ही चाल चलने का अवसर दिया है।
भगवानदास छारिया, इंदौर
सार्थक सृजन
चौदह जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में सत्यवीर नाहड़िया की राग-रागिनी काव्य रचना हरियाणवी संस्कृति में संक्रांत पर्व के परंपरागत मूल्यों के प्रति सचेत किया गया है। भौतिकवादी दौर में त्योहारों से जुड़े रीति-रिवाज प्रादेशिक धरोहर का मूल है। हरियाणवी छंद युक्त काव्य अभिव्यंजना लय-गेय शैली की सराहनीय प्रस्तुति रही।
अनिल कौशिक, क्योड़क कैथल