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विवादास्पद टिप्पणी
कर्नाटक के चीनी और कृषि विपणन मंत्री का वह बयान दुखद है कि किसान चाहते हैं राज्य में बार-बार सूखा पड़े, ताकि उनके ऋण माफ हो जाएं। राज्य के विपक्ष ने इसे कृषक समुदाय का ‘अपमान’ करार दिया। किसान देश की रीढ़ हैं जो देश को दैनिक उपयोग में आने वाले आवश्यक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराते हैं। कोई भी बयान देने से पहले मंत्रियों को उसका मूल्यांकन और विचार करना चाहिए। किसान खाद्य पदार्थों की खेती और उत्पादन खून-पसीने से करते हैं लेकिन उन्हें बहुत सस्ती दरें मिलती हैं और स्टॉकधारक मोटी रकम कमाते हैं।
तौकीर रहमानी, मुंबई
अनुचित बयान
तमिलनाडु के डीएमके नेता दयानिधि मारन द्वारा उत्तर भारतीयों पर विवादास्पद बयान देना शर्मनाक है। अक्सर दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा विवादित बयान दिए जाते हैं जिससे उत्तर भारत के आम लोगों से लेकर राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ जाती है। जवाब में उत्तर भारत के नेताओं द्वारा कठोर आलोचना और निंदा की जाती है। यदि यही राजनीति है तो देश में राजनीतिक स्तर गिरावट की तरफ है। दक्षिण वाले यह समझते हैं कि उनके बयान से इंडिया गठबंधन को फायदा होगा तो ऐसा कदापि नहीं होने वाला है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
न्याय का तकाजा
पच्चीस दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून का ‘भंग कुश्ती संघ’ संपादकीय विश्लेषण करने वाला था। कुश्ती संघ में महिला पहलवानों के साथ यौन दुर्व्यवहार के आरोपी तत्कालीन अध्यक्ष के निकट सहयोगी को अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया तथा गूंगा पहलवान आदि ने अपना विरोध जताया था। सरकार ने कुश्ती संघ को ही भंग कर दिया और एक अतिरिक्त तदर्थ कमेटी बना दी। न्याय का तकाजा है कि महिला पहलवानों के साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाले पर मुकदमा चलाया जाए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल