आपकी राय
अन्नदाता की दशा
सोलह दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में देविंदर शर्मा का लेख ‘केंद्रीय बजट से ही सुधरेगी किसान की दशा’ मुश्किल दौर से गुजर रहे अन्नदाता की स्थिति का विश्लेषण करने वाला था। केंद्रीय बजट में अन्य क्षेत्रों के लिए ज्यादा धन आवंटित किया जा रहा है लेकिन कृषि के लिए पहले के मुकाबले कम हो रहा है। कॉर्पोरेट लोगों द्वारा ऋण न चुकाने पर उनका कर्ज माफ किया जाता है। केंद्रीय बजट में कृषि के लिए ज्यादा पैसा आवंटित किया जाए और कार्पोरेट सेक्टर जैसा ही बर्ताव कृषि क्षेत्र के ऋणों के मामलों में हो।
शामलाल कौशल, रोहतक
रोजगार के मौके
वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी देश के युवाओं का सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। विपक्षी पार्टियों द्वारा बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिशों से यह चर्चा में आ चुका है। निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो युवा रोजगार के बिना कैसे पारिवारिक जिम्मेदारी को वहन करेगा। सरकार को सरकारी नौकरियों के लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए। निजी क्षेत्र में रोजगार को कैसे बढ़ावा दिया जाए इस पर भी एक बड़ी बहस आवश्यक है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
स्वस्थ हो जीवनचर्या
अठारह दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में ‘दिल के जोखिम’ संपादकीय में आज के हालात में उभरी चिंता पर गंभीर चिंतन है। आज जिस तरह हृदयाघात की बीमारी बढ़ती जा रही है इसके पीछे स्वास्थ्य संबंधी लापरवाही ही है। असंतुलित खान-पान और असहज दिनचर्या ऐसे पहलू हैं जो किसी भी गंभीर बीमारी को न्योता देने के लिए काफी हैं। आंकड़े कहते हैं कि बीमारियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। ज़रूरी है कि युवा संतुलित खानपान के साथ ही व्यायाम को जीवनशैली में अपनाएं।
अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.
गहरा चिंतन
तेरह दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में तिरछी नजर के अंतर्गत राकेश सोहम् का व्यंग्य ‘कविता की रील, खाने में कील’ पढ़ा। उनके आलेखों में चिंतन की गहराई, सच को उजागर करती है। तिरछी नजर पढ़ना एक नया अहसास करा गया।
सुनीति साहू, इंदौर