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बदहाली का चित्र
सोलह दिसंबर का देविंदर शर्मा का लेख ‘केन्द्रीय बजट से ही सुधरेगी किसान की दशा’ पढ़कर महसूस हुआ कि जनता का पेट भरने वाला किसान स्वयं राष्ट्रीयकृत बैंकों का भुगतान करने के लिए अपने अंगों की कीमत लगाकर अपनी बदहाली को जाहिर कर रहा है। वहीं कार्पोरेट ऋण नहीं चुकाते हैं तो राजनीतिक नेतृत्व एवं बैंक भी उनको सुरक्षा प्रदान कर देता है। वार्षिक बजटों में हमेशा कृषि को भगवान के भरोसे छोड़ा जाता है। किसान को अन्नदाता कहकर प्रचारित किया गया लेकिन उन्हें सहायता के रूप में बहुत कम मिलता है। किसान को जुताई करते समय कम ही मालूम होता है कि कृषि घाटे का सौदा है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
स्वच्छता जरूरी
स्वच्छता की संस्कृति तभी विकसित होगी जब हम स्वच्छता के प्रति अपनी सोच स्वच्छ करेंगे। आज भी देश के बहुत से सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ादान और शौचालय नहीं है। सत्ताधारी आमजन को साफ सफाई की मूलभूत सुविधाएं प्रदान करवाने में कोई कमी न छोड़ें। यह स्वच्छ भारत के लिए बहुत जरूरी है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर