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थोपे मुख्यमंत्री
‘चौंकाते मुख्यमंत्री’ संपादकीय में उल्लेख है कि तीनों राज्यों में सीएम के जो नाम आए वो वास्तव में शुद्ध नए और चौंकाने वाले रहे। इससे नए लोगों को मौका मिलेगा किंतु सरकार चलाने के लिए पर्याप्त अनुभवी व्यक्ति भी होना जरूरी है। विधायक दल के समक्ष पर्यवेक्षक हाईकमान के प्रभाव या दबाव में सहमति लेते हैं, तो इसे वास्तव में प्रजातांत्रिक रूप से सीएम का चयन नहीं कह सकते। बल्कि यह थोपे हुए सीएम ही कहना होगा जिससे कुछ समय बाद असंतोष पनपने का अंदेशा रहता है। अच्छा हो भविष्य में इस तरह से मुख्यमंत्री थोपे नहीं जाएं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
आकाश से उम्मीद
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी के उत्तराधिकारी के रूप में घोषित कर बहुजन राजनीति को नए सिरे से धार देने का प्रयास किया है। वर्तमान में बहुजन राजनीति की दशा और दिशा पूरी तरह बिगड़ी चुकी है। नि:संदेह, यह निर्णय बहुजन राजनीति को जरूर प्रभावित करेगा और आने वाले समय में पार्टी की अग्नि परीक्षा भी होगी। आज का दौर बिल्कुल अलग है, यदि आकाश आनंद आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करते सबको साथ लेकर चलेंगे तो जरूर बसपा मज़बूत हो सकती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
हृदयस्पर्शी कथानक
दस दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में विमल कालिया की ‘फैसले की कसक’ कहानी पति-पत्नी के मनमुटाव का आजीवन दर्द का विश्लेषण करने वाली रही। पारिवारिक धरातल पर वैचारिक सामंजस्य घर की सुख-समृद्धि का परिचायक है। अदालती मुकदमा जिंदगी को दो हिस्सों में बांटने का कारण बनता है। ऐसे में इकलौती संतान को माता-पिता का उचित स्नेह नहीं मिल पाता। दुविधा ग्रस्त जिंदगी आत्महत्या करने पर मजबूर करती है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल