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अमेरिका की निरंकुशता
दो दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में पुष्प रंजन का लेख ‘टारगेट किलिंग का सर्वाधिकार केवल अमेरिका को ही क्यों?’ विषय पर चर्चा करने वाला था। अमेरिका का कहना है कि उसकी संसद के द्वारा पारित एक कानून के अनुसार उसे यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने खिलाफ काम करने वाले किसी भी आतंकवादी को दुनिया के किसी भी हिस्से में जाकर मार सकते हैं। कमाल की बात यह है कि इस मामले में संयुक्त राष्ट्र पंगु है। भारत समय-समय पर अमेरिका को वांछित आतंकवादियों की लिस्ट देता रहता है लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। क्या अगर भारत भी अमेरिका की तरह अपनी संसद से टारगेट किलिंग के बारे में अमेरिका की तरह करता तो दुनिया के विभिन्न देश इसे सहन करते?
शामलाल कौशल, रोहतक
महासमर की तरह
चार राज्यों के चुनाव परिणाम देखने से स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है। तेलंगाना में कांग्रेस ने जरूर वापसी की है लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति उत्तर भारत की राजनीति से बिल्कुल अलग है। उत्तर भारत के तीन राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा की शानदार वापसी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि इन तीन राज्यों के जनमानस ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया है। वर्ष 2024 के चुनाव के लिए भाजपा ने एक मजबूत नींव तैयार कर दी है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
विश्वास की कमी
अमेरिकी में खालिस्तानी अलगाववादी को मारने की साजिश से एक भारतीय अधिकारी को जोड़ना ‘चिंता का विषय’ है। विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को न्यूयॉर्क की अदालत में दायर आरोपों पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा। हालांकि अमेरिकी अदालतों में इस मामले में भारतीय अधिकारी पर आरोप नहीं लगाया गया है, लेकिन इसे खारिज नहीं किया जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इससे निश्चित रूप से दोनों देशों के सुरक्षा प्रतिष्ठानों के साथ-साथ अन्य सुरक्षा साझेदारों के बीच विश्वास में कमी आई है।
मोहम्मद तौकीर, पश्चिमी चंपारण
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