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डीपफेक की चुनौती
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये डीपफेक एक नई परेशानी बनकर उभरा है। फिलहाल तो सेलिब्रिटी और बड़े लोगों को ही इसका निशाना बनाया गया है। लेकिन भविष्य में यह अधिक व्यापक रूप से फैल सकता है। इसके लिए समय रहते सरकार सक्रिय हुई है। लेकिन उसे एकदम रोक पाना इतना आसान भी नहीं है। सोशल मीडिया को भी ऐसी फिल्टर कर सकने वाली तकनीक विकसित करनी होगी जो डीपफेक वीडियो जैसी झूठी या गलत खबरों का हाथों हाथ खुलासा करके उन पोस्ट्स को तत्काल डिलीट कर दें। जनता को भी आंख बंद कर ऐसे किसी भी वीडियो पर विश्वास नहीं करना चाहिए। कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पूर्व उसकी सच्चाई जांच लेना जरूरी है।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.
अलगाव को प्रश्रय
संपादकीय ‘अलगाव के मंसूबे’ में उल्लेख है कि खालिस्तानियों को कनाडा का खुला तथा अमेरिका व ब्रिटेन का भी अप्रत्यक्ष संरक्षण प्राप्त होने से अलगाववादी करतूतों से बाज नहीं आ रहे। निज्जर की हत्या का कनाडा द्वारा भारतीय एजेंटों पर बिना सबूत के तथा पन्नू को निशाने पर लेने आदि के केवल आरोप लगाए जा रहे हैं, जबकि जांच के प्रति कन्नी काट रहा है। अमेरिका और कनाडा दोनों देशों की नागरिकता लेकर पन्नू भी आतंकी गतिविधियां चला रहा है। अच्छा हो दोनों देश पन्नू की नागरिकता समाप्त करें या उसकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाएं, अन्यथा भारत के सिखों को अलगाववादियों से निपटना भी आता है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
आंदोलन की तपिश
आये दिन अपनी मांगों के चलते किसान चंडीगढ़ की तरफ कूच करते हैं और धरना देते हैं। धरना प्रदर्शन के चलते कुछ सड़कों के बंद होने की वजह से आने-जाने वालों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सरकार भी इन प्रदर्शनों को रोकने में असमर्थ है। न किसान ही और न ही सरकार आम जनता के लिए चिंतित हैं।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
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