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डीपफेक के खतरे
पच्चीस नवंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘डीपफेक का खतरा’ कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिये गलत उपयोग के संदर्भ में लोगों को भ्रमित करने के भय से सावधान करने वाला था। हाल ही में इस तकनीक के गलत इस्तेमाल से बने सेलिब्रिटीज के भी कई डीपफेक वीडियो वायरल हुए हैं। इस मामले में तकनीकी विस्तार से समाज में खासा प्रतिकूल असर पड़ रहा है। देखा जाये तो इस तकनीक का अधिकतर गलत प्रयोग महिलाओं की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिये किया जा रहा है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को इसके बारे में चेतावनी देकर नए सख्त कानून बनाने की बात कही है। विश्वव्यापी इस साइबर अपराध पर शीघ्र ही काबू करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
जांच जरूरी
उत्तरकाशी के सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सकुशल निकाला जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। 41 मजदूरों का साहस, धैर्य और जिंदा रहने की इच्छा शक्ति भी एक बड़ी बात थी। प्रधानमंत्री ने भी अपने ट्वीट में इसी बात को रेखांकित किया है। पूरे देशवासियों के लिए यह दिल को छू लेने वाला समय था और प्रत्येक देशवासियों की आंखें नम हो गई थीं जब उनको बाहर निकाला जा रहा था। इसके बावजूद जो दुर्घटना का घटनाक्रम रहा उसकी जरूर जांच होनी चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
विवेक पर हो फैसला
संपादकीय अग्रलेख ‘लोकतंत्र बनाम लोभतंत्र’ में यह स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है कि रेवड़ी संस्कृति जिस तेजी से बढ़ रही है, एक दिन करों के रूप में फिर जनता से ही वसूली जाएगी। वहीं यह जनता में अकर्मण्यता भी फैलाएगी। इससे अच्छा होगा कि उन्हें रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दिया जाए, उनके लिए काम के अवसर पैदा किए जाएं। स्थाई लोकतंत्र के लिए लोभतंत्र की आहुति दी जाए एवं उन्हें उनके विवेक पर जन प्रतिनिधि चुनने का मौका दिया जाए।
भगवानदास छारिया, इंदौर