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लोभतंत्र के जोखिम
सत्ताईस नवंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘लोकतंत्र बनाम लोभतंत्र’ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं की गारंटी का विश्लेषण करने वाला था। देखा गया है कि जिस राज्य ने मुफ्त सुविधाएं प्रदान कीं, वहां राज्य की आर्थिकी चरमरा गई। इसलिए सरकारों को अपनी आय को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी कार्यों पर पैसा खर्च करना चाहिए। मुफ्त रेवड़िया बांटने से राजकोषीय घाटे पर काबू, विकास व अनिवार्य जन कल्याण कार्यों में बाधा आती है। इस राजनीतिक भ्रष्टाचार का बोझ करदाताओं को उठाना पड़ता है। यूं भी मुफ्त की गारंटी मतदाताओं के योग्य उम्मीदवार चुनने में बाधक है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
संयम बरतें
चुनाव प्रचार के समय अक्सर नेताओं की ‘जुबान फिसल’ जाती हैं। वोट की राजनीति के लिए एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं ताकि सुर्खियों में रहें। निस्संदेह, भारत का लोकतंत्र परिपक्व है, लेकिन राजनेताओं की परिपक्वता चुनाव के समय नज़र नहीं आती है। हाल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के लिए जो अशोभनीय शब्द प्रयोग किया है इसको किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है। चुनाव आयोग ने भी इस पर राहुल गांधी को नोटिस भेजा है और जवाब तलब किया है। बेहतर है राजनेता संयम बरतें।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली
सतर्कता जरूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन को आशंका है कि चीन में श्वसन संबंधी बीमारियों और निमोनिया के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। इसके अलावा वहां पिछले तीन वर्षों के मुकाबले अक्तूबर के मध्य से अब तक इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी के केसों में भी बढ़ोतरी हुई। ऐसे में सतर्कता जरूरी है। भारत सरकार को भी समय रहते जांच आरंभ कर देनी चाहिए ताकि आने वाले समय में एक और नई महामारी का सामना नहीं करना पड़े।
निधि जैन, गाजियाबाद