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ज़हरीली सामग्री
आज का युवा सोशल मीडिया का दीवाना हाे गया है। वहीं इसके प्लेटफॉर्म पर कई तरह के टॉक्सिक कंटेंट हैं जिससे युवाओं और बच्चों के मन एवं मस्तिष्क पर बुरा असर डाल रहे हैं। ये अपने प्लेटफॉर्म से होने वाले खतरों के बारे में जनता को स्पष्ट तरीके से नहीं बता कर उन्हें गुमराह कर रहे हैं। भारत में भी इन प्लेटफॉर्म पर कई बार शिक्षाविदों, सामाजिक संगठनों एवं लोगों द्वारा आरोप लगाए गए हैं। अब यहां भी सरकार को हस्तक्षेप करना होगा ताकि युवा पीढ़ी का नुकसान न हो। साथ ही भारत की संस्कृति एवं परम्परा को क्षति न पहुंचे।
डिम्पी चौधरी, पीयू, चंडीगढ़
जीवन रक्षा हो
इकतीस अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘असमंजस की अनुपस्थिति’ संपादकीय लेख इस बात की ओर इंगित करता है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस्राइल-हमास संघर्ष को रोकने का प्रस्ताव पारित कर दिया, लेकिन भारत ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट नहीं देकर अनुपस्थित रहना उचित समझा। वैसे भारत ने हमेशा फलस्तीनियों का समर्थन किया था। दुनिया में भारत की परंपरागत अहिंसावादी नीति का संदेश ही जाना चाहिए। नि:संदेह, हमास के आतंकवादी हमले का विरोध होना ही चाहिए। लेकिन फलस्तीनियों के जीवन की रक्षा की वकालत भी होनी चाहिए।
भगवानदास छारिया, इंदौर
उम्मीदों का गगनयान
उनतीस अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में डॉ. संजय वर्मा का ‘नये भारत का अभियान उम्मीदों से भरा गगनयान’ लेख ज्ञानवर्धक, नवीन जानकारी देने वाला रहा। भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत से अंतरिक्ष सफलता विश्व भर में पहचान बनाने वाली है। भविष्य में अंतरिक्ष उपलब्धियों के प्रयास निश्चित रूप से नये आयाम स्थापित करेंगे। सचित्र लेखावली जिज्ञासाओं को शांत करने वाली व हैरतअंगेज रही।
अनिल कौशिक, क्योड़क कैथल