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लोकतंत्र की मजबूती
अठारह अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘जनतंत्र को मजबूत भी बनाएं ये चुनाव’ विश्लेषण करने वाला था। चुनाव जीतना राजनेताओं का मुख्य उद्देश्य बन गया है ताकि वह सत्ता सुख भोगते रहें। अपने पक्ष में मतदान कराने के लिए कई बार राजनीतिक दल कई प्रकार की रेवड़ियां बांटते हैं। यह सब तो राजनीतिक भ्रष्टाचार है जो कि लोकतंत्र को कमजोर करता है। भले ही कुछ समय के लिये लोगों को मूर्ख बनाया जा सके, लेकिन हमेशा सबको मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। यह बात मतदाता और राजनेताओं को समझनी होगी। यह समझ जितनी जल्दी आ जाये, जनतंत्र के स्वास्थ्य के लिए उतना ही बेहतर है। वोट लेने वाले तथा देने वाले दोनों ही लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करें।
शामलाल कौशल, रोहतक
सांस्कृतिक विरासत
पंद्रह अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में प्रभा पारीक का ‘गरबा श्रद्धा भक्ति से झूमती युवा पीढ़ी का रंगोत्सव’ लेख पढ़ा। प्रादेशिक पारंपरिक रीति-रिवाज का साझी लोक सांस्कृतिक, वेशभूषा, नृत्यगान आस्था-विश्वास को दर्शाता है। पारंपरिक मूल्यों को धरोहर के रूप में संजोकर रखना युवा पीढ़ी के लिए भविष्य को सुरक्षित रखना है। बढ़ते इंटरनेट-मोबाइल के प्रचलन में ऐसा सार्थक प्रयास काबिलेतारीफ है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
युद्ध नहीं समाधान
हमास आतंकवादियों ने जिस तरह से इस्राइल में महिला और बच्चों के साथ क्रूरता की सारी हदें पार की हैं, वह अमानवीय है। घटना से आहत इस्राइल अब शांति के लिए बातचीत के लिए कभी तैयार नहीं हो सकता। वहीं हमास के चरमपंथियों को ईरान और अब मुस्लिम राष्ट्रों से मिल रहा समर्थन इस युद्ध को रूस यूक्रेन की तरह लंबा खींचने में उत्प्रेरक का काम करेगा। वैसे युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.