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जानलेवा शिक्षा
चार अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून में अविजित पाठक का संवेदनशील लेख ‘जीवन लीलती शिक्षा को खारिज करने का वक्त’ वर्तमान उच्च शिक्षा के दोषों को उजागर करने वाला था। अच्छे करिअर की तलाश में अधिकांश माता-पिता तथा अभिभावक अपने बच्चों को उच्च संस्थानों में बेहतर शिक्षा की तैयारी के लिए भेजते हैं। वहां की अकादमियां सपने बेचती हैं। बहुत सारे छात्र अवसाद, तनाव, निराशा, अंधकारमय भविष्य के चलते आत्महत्या कर लेते हैं। विद्यार्थियों तथा माता-पिता के सपने चूर-चूर हो जाते हैं। व्यवस्था में परिवर्तन करके विद्यार्थियों के जीवन को बचाया जा सकता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
डिजिटल होता देश
देश डिजिटल होता नज़र आ रहा है। डिजिटल करंसी के ज़रिये आम नागरिक और सरकार दोनों को ही काफ़ी फ़ायदे होंगे। सरकार को नोट छापने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। डिजिटल पेमेंट का अच्छा व सुरक्षित माध्यम है किसी को भी अपने साथ कैश लेकर घूमने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वहीं दूसरी ओर, डिजिटल करंसी जहां लोगों को लाभ पहुंचाने में काम कर रही है। वहीं साइबर चोर इसकी राह में ठगी करके मुश्किलें भी पैदा रहे हैं। सरकार को इसे रोकने के लिए आवश्यक प्रयास करने होंगे।
सविता देवी, पीयू, चंडीगढ़
तब आये नींद
संपादकीय लेख ‘नींद मगर आती नहीं’ बताता है कि यह बीमारी पूरे विश्व में फैल रही है। इसके पीछे आजकल की जीवनशैली है। इंसान दिनभर मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर में घिरा रहता है। व्यक्ति रातोंरात अमीर बनने की धुन में चिंता व तनावग्रस्त रहता है। बिस्तर पर जाते-जाते भी मोबाइल से चिपका रहता है, जिससे निकलने वाली किरणें आंखों से नींद चुरा लेती हैं। हमें दिन में व्यायाम, योग, प्राणायाम करना चाहिए। अच्छी गहरी नींद अच्छे स्वास्थ्य की प्रतीक होती है।
भगवानदास छारिया, इंदौर
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