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खतरनाक मौन
मध्यप्रदेश के उज्जैन की घटना ने मानवीय मूल्यों के पतन का अक्स दिखा दिया। समाज के इस नजरिये पर भी सवाल खड़े कर दिए, जब भी अपराध होते हैं या कोई दुघर्टना होती है तो हम सिर्फ अपना फर्ज निभायेंगे या घटना का वीडियो बनाएंगे? आखिर क्यों लोग मदद के लिए आगे नहीं आते, यह समझ से परे है। उज्जैन में जो नाबालिग के साथ हुआ उससे ज्यादा खतरनाक बात समाज की उदासीनता है। समाज के चरित्र को बदलना होगा नहीं तो कन्या पूजन व ‘बेटी है तो कल है’ की बातें सिर्फ बातें ही रहेंगी। समाज के इस मौन के कारण मानवीय सरोकार खंडित हो रहे हैं।
हरिहर सिंह चौहान, इंदौर, म.प्र.
दम तोड़ते अस्पताल
महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में मरीज-मृत्यु दर बढ़ती जा रही है। अगस्त महीने में ठाणे जिले के कलवा अस्पताल में एक ही रात में 18 मरीजों की मौत हो गई। प्रशासन इस प्रकरण से कोई सबक नहीं ले रहा है। अस्पतालों में सबसे ज्यादा मौतें नवजात शिशुओं की हुई हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हाल ही में सरकारी अस्पतालों में हुई मौतों ने एक बार फिर महाराष्ट्र की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था की कलई खोल दी है। इसका मुख्य कारण सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों, महत्वपूर्ण एक्स-रे उपकरणों और दवाओं की कमी है।
जहांगीर अली, मुंबई
वाकई महानायक
तीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून विचार अंक में देविंदर शर्मा का ‘भूख के संकट से बचाने वाला महानायक’ लेख नवीन जानकारी से भरपूर रहा। प्रो. स्वामीनाथन के अथक प्रयासों से ही देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बन निर्यातक देशों की सूची में स्थान पाने में सफल रहा है। अन्न उत्पादन में किसान की मेहनत की बदौलत आज राष्ट्र आत्मनिर्भर हुआ है। भारत को उन्नतिशील बनाने वाले प्रो. स्वामीनाथन को ही इसका श्रेय जाता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल