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सार्थक पहल जरूरी
बीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘बहिष्कार नहीं, सार्थक बनाने से बनेगी बात’ विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ द्वारा टीवी चैनलों के 14 एंकरों के कार्यक्रमों के बहिष्कार करने का विश्लेषण करने वाला था। सत्तापक्ष ने विपक्ष की इस नीति को लोकतंत्र का गला घोंटने की संज्ञा दी है। अधिकतर टीवी चैनल पत्रकारिता की निष्पक्षता, निडरता, जनता के प्रतिनिधि तथा जनहित के लिए सरकार से प्रश्न पूछते हुए दिखाई नहीं देते। लेखक ने विपक्ष को विभिन्न टीवी कार्यक्रम में हिस्सा लेकर अपनी बात कहने की जो सलाह दी है वह ठीक लगती है। टीवी चैनलों में जाकर ही वो अपने विचार आम लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
कानून में संशोधन
संपादकीय ‘सजायाफ्ता नुमाइंदे’ पढ़कर शीर्ष अदालत में याचिका की सुनवाई के दौरान एमिक्स क्यूरी द्वारा दिए गए सुझाव से स्पष्ट हुआ कि किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं है। सरकारी कर्मचारी हो या फिर राजनेता, यदि उसने अपराध किया है तो सजा का अधिकारी है। कर्मचारी जब नौकरी से बर्खास्त हो सकता है तो राजनेता को भी सिर्फ छह वर्ष के लिए सजा नहीं होकर उम्र भर चुनाव लड़ने की पात्रता नहीं होनी चाहिए। इस पर अमल होने के लिए कानून में संशोधन होना चाहिए।
भगवानदास छारिया, इंदौर
ऐतिहासिक जानकारी
सत्रह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में सत्यवीर नाहड़िया का ‘गुड़ तै मिट्ठी गुड़ियाणी’ साहित्यकार बाबू बालमुकुंद गुप्त की जन्मस्थली, साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र गुडयाणी का साक्षात्कार ऐतिहासिक जानकारी से भरपूर रहा। उनकी धरोहर को संरक्षण प्रदान करवाने में दैनिक ट्रिब्यून की अतुलनीय सक्रियता काबिलेतारीफ है। मां बोली हरियाणवी भाषा संस्कृति की मिठास शीर्षक अनुरूप चित्ताकर्षक रही।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल