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आत्मविश्वास की भाषा
चौदह सितम्बर के दैनिक ट्रिब्यून में हिंदी दिवस के अवसर पर प्रोफेसर सर्वदमन मिश्र का लेख ‘राष्ट्र का आत्मविश्वास बढ़ाती है निज भाषा’ पढ़ा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्र के निर्माण में निज भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हिंदी भारत का स्वर है और राष्ट्र की आत्मा। आधुनिक युग में संसार के अनेक देशों में हिंदी बोली और समझी जाती है। इसका कुछ श्रेय हमारे मीडिया और नेतृत्व को भी जाता है। हिंदी भारत को एक सूत्र में बांधने में अहम भूमिका निभा रही है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
माफी का अमृत
अठारह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून के आस्था अंक में मुनि वीरेंद्र का 'अमृत पीने जैसा है किसी को माफ करना' लेख भटकी मानवता को जीने की सहज सरल शैली का मार्ग प्रशस्त करने वाला रहा। लेख के अनुसार दूसरे के प्रति ईर्ष्या,वैर, प्रतिशोध रखना अपने लिए अप्रत्यक्ष रूप से आधि- व्याधि को निमंत्रण देने जैसा है। अगर भूलवश गलती हो जाए तो तुरंत माफी मांग लेनी चाहिए। इससे आहत आदमी आत्म संतुष्टि अनुभव करता है वहीं हमारी क्रोध अग्नि शांत हो जाती हैं। क्षमा याचना करना और मांगना दोनों ही बातें कठिन एवं दुश्कर हैं। माफी दोनों पक्षों के लिए लाभकारी है।
अनिल कौशिक, क्योड़़क, कैथल