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नशे का नासूर
सात सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘नशे पर नश्तर’ आज के युवाओं में नशीले पदार्थों के सेवन और बढ़ती मौतों पर चिंता व्यक्त करने वाला था। समय-समय पर पंजाब की सरकारों ने इस समस्या को हल करने का आश्वासन तो दिया लेकिन यह समस्या और भी गंभीर होती गई। नशे की समस्या अब देश के अन्य राज्यों में भी फैलती जा रही है। शासन तथा प्रशासन की सतर्कता की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार है। समस्या का हल करने के लिए युवाओं में जागरूकता पैदा करने सहित नशामुक्ति केंद्रों का विस्तार हो। इसके साथ-साथ नशीले पदार्थों की तस्करी तथा व्यापार करने वालों के खिलाफ कठोर तथा त्वरित कार्रवाई की जाए।
शामलाल कौशल, रोहतक
दुर्भाग्यपूर्ण बयान
उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म के विरुद्ध जो टिप्पणियां की हैं, वह बड़ी सोची-समझी योजना के तहत की गई हैं। मगर स्टालिन ने जो बयान राजनीतिक लाभ पाने के लिए दिया है, वह क्षेत्रीयता से आगे निकल कर राष्ट्रीय स्तर पर आईएनडीए को नफा कम और नुकसान अधिक पहुंचाएगा। भाजपा की मजबूती और महती जीत के लिए विपक्षी दलों द्वारा दिए गए ऐसे विषाक्त बयान संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं। बयान को लेकर भी देश के विख्यात बुद्धिजीवियों ने स्टालिन पर अापराधिक कार्रवाई करने का बयान जारी किया है।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
समन्वय और संवाद
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संचालक का कहना न केवल न्यायोचित एवं तर्कसंगत है बल्कि वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप है। भारतीय सामाजिक संरचना में जातिगत व्यवस्थाएं मजबूत जड़ जमा कर बैठी हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उपेक्षित, भूमिहीन दलितों पर आज भी अत्याचार और उत्पीड़न जातिगत श्रेष्ठता और जातीय दंभ के कारण होता है। इससे पूर्व भी उन्होंने जातिवाद पर कठोर प्रहार किया था। विचार करना होगा कि भारत में अमन-चैन व समाज के सभी समुदायों में समन्वय और संवाद कायम हो।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली