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आफत में राहत
इक्कीस अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘आपदाओं का सामना’ में वर्णित है कि दो महीने से भी ज्यादा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब में तबाही मचाने वाली भारी बरसात, भूस्खलन और बाढ़ के कारण जो अभूतपूर्व नुकसान हुआ है वह ग्लोबल वार्मिंग, पर्यटन के नाम पर अवैध भवन निर्माण तथा पहाड़ों के साथ छेड़छाड़ का परिणाम है। पहाड़ों पर पर्यटन के नाम पर छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं के बारे में समय-समय पर आगाह करते रहना चाहिए। मुसीबतग्रस्त लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाकर उन्हें खाद्य आवास संबंधी सुविधाएं देनी चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि विकास कार्यों को मौसम की आवृत्ति व तीव्रता को ध्यान में रखते हुए अंजाम दिया जाये।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
उन्नत खेती हो
संपादकीय ‘कर्ज का मर्ज’ में उल्लेख है कि हाल ही में लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि पंजाब के 25 लाख किसान कर्ज की चपेट में हैं तथा खेती घाटे का सौदा होने से लगभग 1000 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इन आत्महत्याओं के मूल में कर्ज का भारी बोझ ही था। देश में समृद्ध कहलाने वाले पंजाब के किसानों की माली हालत खराब होना चिंतनीय है। अन्नदाताओं की ऐसी स्थिति का असर अन्य प्रदेशों पर न भी पड़ सके, लेकिन समय रहते उन्नत खेती के जो भी आवश्यक कदम उठाए जा सकते हों, उनकी पहल पंजाब से करना बहुत जरूरी है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
अलोकतांत्रिक विरोध
समाजवादी पार्टी के ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के ऊपर जूते फेंकने एवं घोसी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान के ऊपर स्याही फेंकने की घटनाओं का स्वस्थ राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। देश में स्वस्थ राजनीतिक परंपरा एवं शुचितापूर्ण राजनीति को मजबूत करना होगा। किसी राजनीतिक नेता के प्रति नाराजगी प्रकट करने का यह तरीका एक आपराधिक प्रवृत्ति है। जरूरी यह भी है कि नेताओं को वोटों की राजनीति चमकाने के लिए जुबान पर काबू करना होगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली