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देश में महंगाई, बेरोजगारी, जातीय एवं सांप्रदायिक कटुता अपने चरम बिन्दु पर है। सवाल उठता है कि ऐसे में क्या हमें अपने पड़ोसी देशों के हालातों पर नजर रखनी चाहिए या अपने राष्ट्र की अंदरूनी समस्याओं से निजात पाने के उपाय सोचने चाहिए। देश का इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया तथा बुद्धिजीवियों का एक वर्ग पड़ोसी मुल्कों की परिस्थितियों पर जमकर समीक्षा कर रहे हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि युवा वर्ग विदेशों की ओर पलायन कर रहा है। जिस युवा शक्ति का राष्ट्र निर्माण में योगदान होना चाहिए वह शक्ति अन्य राष्ट्रों का निर्माण कर रही है। अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए दूसरों की विफलताओं का राग अलापना राष्ट्रहित में नहीं होगा।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
नशे का संकट
संपादकीय ‘नशे का नश्तर’ में उल्लेख है कि हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों के साथ-साथ इनकी राजधानी चंडीगढ़ भी नशे के कारोबार की चपेट में आ रहा है। स्थिति यह है कि पंजाब में ही 66 लाख लोग नशे की गिरफ्त में हैं। आश्चर्य होता है कि राज्य पुलिस व केंद्रीय बलों की कड़ी सुरक्षा के बावजूद पाक सीमा पार से ड्रोन से नशीले पदार्थ और हथियार गिरा रहा है। युवा वर्ग को नशे की बर्बादी से बचाने हेतु उन सियासी लोगों के खिलाफ धरपकड़ और कार्रवाई की जाये, जो नशे के कारोबार में लिप्त हैं या शह दे रहे हैं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
मधुमेह का खतरा
भारत में तेजी से बढ़ते डायबिटिक मरीजों की संख्या बड़ी चिंता का विषय है। वर्ष 2019 में डायबिटीज मरीजों की संख्या करीब 7 करोड़ थी जो अब बढ़कर 10 करोड़ पर जा चुकी है। यह भी महत्वपूर्ण है कि केवल स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एकमात्र कारण नहीं है बल्कि भारतीयों के खानपान और रहन-सहन के तौर-तरीके भी इसमें महत्वपूर्ण कारक हैं। यह एक कड़वा सच है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का मानक विश्वस्तरीय नहीं है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
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