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हिंसा पर राजनीति
मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है। दो समुदायों के बीच शुरू हुई लड़ाई में सैकड़ों लोग अपनी जान गवां चुके हैं। अभी यहां का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि हरियाणा के नूंह में धार्मिक जुलूस में उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया। वहीं राजनीतिक दल अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सांप्रदायिकता का सहारा लेते हैं। सोशल मीडिया भी काफी हद तक साम्प्रदायिक दंगों के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा फ़ोटो, वीडियो को गलत तथ्यों के साथ प्रस्तुत कर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की जाती है। मूल्यपरक शिक्षा का अभाव होने के कारण लोग दंगाइयों के चंगुल में आसानी से फंस जाते हैं।
शिवेन्द्र यादव, कुशीनगर
दवा का खेल
पांच अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून विचार अंक में टीके अरुण का ‘दवाओं की गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली लागू करें’ लेख सारगर्भित स्वास्थ्य नियामक व नियमों की जानकारी से भरपूर था। वर्तमान निजी अस्पतालों में डॉक्टर द्वारा रोगी के लिए लिखी रोग निवारक दवा बताये गये कैमिस्ट से व्यक्ति जेब की परवाह किए बिना विश्वास के साथ खरीदता है। कैमिस्ट के पास दवा निर्मिता कंपनी से मुद्रित मूल्य से कई गुना सस्ती पहुंचती है जबकि विक्रेता द्वारा अंकित मूल्य से मोटा मुनाफा कमाया जाता है। स्वास्थ्य सेवाओं को सुरक्षित बनाने के लिए समय-समय पर दवाओं की जांच करते रहना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
असहिष्णुता का बढ़ना
इस समय मणिपुर के हालात ठीक नहीं हैं, जिसको लेकर संसद से सड़क तक माहौल गरमाया हुआ है। आजकल देश में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है, इसे रोकने के लिए उठाए गए कदम की आलोचना को देश के खिलाफ नहीं कहा जा सकता। यह देश के बुद्धिजीवियों का कर्तव्य है कि वह कुछ मामलों में समाज का मार्गदर्शन करें।
शामलाल कौशल, रोहतक