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पक्षियों का संरक्षण
सोलह जुलाई के ‘लहरें’ पृष्ठ पर छपे मेजर जनरल अरविंद यादव के लेख ‘मानसून में मनमोहक परिंदों की चहचहाहट’ के लिए लेखक व संपादक मंडल को बधाई। देखते-देखते देश-दुनिया से पक्षियों की पिचहत्तर फीसदी जातियां नष्ट हो गई हैं। जो थोड़ी बहुत बची हैं, वे भी तेजी से लुप्त हो रही हैं। प्रकृति के आंगन से यदि एक छोटी-सी चिड़िया का भी विलोपन होता है तो प्रकृति के सौंदर्य और उसके स्वतंत्र कार्य में गंभीर बाधा पड़ती है। इसलिए पक्षियों का संरक्षण हमें जान का जोखिम उठाकर भी करना चाहिए। वायु, जल, भूमि प्रदूषण और कटते वनों ने पक्षियों का जीना दूभर कर दिया है।
राजकिशन नैन, रोहतक
नियुक्ति पर सवाल
संपादकीय ‘नियुक्ति को नकार’ में उल्लेख है कि ईडी डायरेक्टर की सेवा विस्तारित करने में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करते हुए शासन द्वारा सेवा में दो बार विस्तार कर नियुक्ति दी। विपक्ष द्वारा दायर याचिका पर कोर्ट ने नियुक्ति को अवैध ठहराया। यद्यपि शासन ने अध्यादेश जारी कर कानून बना लिया, किंतु कानूनन नियुक्ति में स्वच्छंदता अपनाई गई। वस्तुत: सेवानिवृत्ति की आयु के बाद दूसरे पात्र व्यक्ति को भी उस पद पर नियुक्ति होना जरूरी होता है जिसकी उपेक्षा होने से पात्र व्यक्ति के अधिकारों पर कुठाराघात होने से जांच पर भी सवाल उठते हैं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
पौधरोपण का महीना
सत्रह जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून के आस्था अंक में चेतनादित्य का लेख हरियाली अमावस्या में पौधरोपण की प्रेरणा मिलती है। सनातन हिन्दू संस्कृति में सावन के महीने का विशेष महत्व है। देवों के देव महादेव शिव शंकर पर शिवरात्रि पर श्रद्धालु कांवड़ लाकर जलाभिषेक करते हैं। इस दिन अपने पितरों के नाम से पौधरोपण करने से पुण्य के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा होती है। हमारे ऋषि-मुनि पर्यावरण के प्रति सजग थे।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
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