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मूल्यविहीन राजनीति
आठ जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘सत्ता की राजनीति में विचार-सिद्धांतों की बलि’ सत्ता प्राप्त करने के लिए नैतिकता तथा मर्यादा की सीमाओं को लांघे जाने का पर्दाफाश करने वाला था। विडंबना यह है कि सत्तापक्ष जिन विपक्षी नेताओं को भ्रष्ट कहता है और उनके खिलाफ ईडी, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट तथा सीबीआई की कार्रवाई चल रही होती है, सत्तापक्ष में जाने के बाद उनके खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी जाती है। ऐसी स्थिति में चुनाव मजाक बनकर रह गए हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
संकीर्ण मानसिकता
आधुनिक भारत में विकृत मानसिकता का ऐसा घृणित चेहरा सामने आया है कि कल्पना मात्र से ही शरीर में सिहरन और मन विचलित हो जाता है। मध्य प्रदेश के सीधी जिले में एक पढ़े-लिखे आदमी ने आदिवासी समाज के व्यक्ति पर मूत्र विसर्जन कर पूरे देश को शर्मसार किया है। एक तरफ श्रेष्ठ भारत एवं राष्ट्र सर्वप्रथम का सपना देख रहे हैं और दूसरी तरफ जातिवादी मानसिकता से भरे लोग समाज में आक्रोश और जहर घोल रहे हैं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली